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જન ધમવિકાસ
श्रमण भगवान् महावीर का अटल सिद्धान्त है कि जो मनुष्य सत्यतत्व के विपरीत प्ररूपणा करता है, सत्यतत्त्वका विरोधी है वह निह्नव और उत्थापक है ऐसा पुरुष निकाचित पापराशिका संचय कर अणंत चतुर्गतिरूप संसारमें परिभ्रमण करता रहता है । दुर्जनोंकी यह प्रवृति नवीन नहीं है किंतु अनादि परंपरागत है । ये लोग हमेशां सत्यतत्व के द्वेषक ही सिद्ध हुए है। • यथार्थताके विरोधकी बुद्धि तभी उत्पन्न होती है जबकी विनाशकाल सन्नि
कट हो । विनाशकाल ही शनैः २ मतिमें विपरीतता उत्पन्न करके मनुश्य का सर्वस्व नाश कर देता है । विरोधी जन विरोधकी ओटमें स्वार्थ का पोषण करते हुए अनेक आधारविहीन आक्षेप भी करते रहते हैं किंतु सच्चेहृदयी, आत्मानंदी पुरुष उन मिथ्या आक्षेपोकी ओर लक्ष्य न देकर अपने जीवन ध्येयकी सिद्धिमें सफलता प्राप्त करने के लिये ही सतत प्रयत्नशील रहते है। उदाहरणार्थ-संवत् १९९६ के माघ सुदी १० के दिवस स्थानकवासियों के प्रसिद्ध पूज्य जवाहिरलालजी म० का संप्रदाय में से आये हुए सरदारमलजी म० (सोमविजयजी) प्रवर्तक मुनि महाराज श्री पन्नालालजी म० सा० (प्रमोद विजयजी) आदि हम पांचों मुनियोंने जीर्णोद्धारक श्रीमज्जैनाचार्य श्री विजयनीतिसूरीश्वरजी के समीप आत्मकल्याणार्थ जो वेषपरिवर्तन करके अपनी शुद्ध श्रद्धा का जो परिचय दिया इससे स्थानकवासी समाजमें अत्यंत सनसनी पूर्ण वातावरण फैल गया। और सर्व साधारण लोगों के हृदय में यह भावना दृढ़तम अपना प्रभाव जमाती गई कि ऐसे २ चिरकाल के दीक्षित एवं विद्वान् भुनि भी अपनी समाजसे पृथक हो कर श्वे. मूर्तिः साधुसमाजके अंदर मील रहे है इस वेशपरिवर्तनसे कितनेक स्थानकवासियोंकी स्थानकधर्मसे श्रद्धा भी विचलीत हो गई। इस प्रकार लोगों की भावनाओंमें जोरोसे परिवर्तन होता हुआ देख कर अपनी समाजकी रक्षाके निमित स्थानकवासियोंकी ओर से कईएक समाचार पत्रोंमें ऐसी निराधार एवं आकाश कुसुम सम कल्पनाएं पैदा करके भोले जीवोको बहकाने के लिये लेख निकाले गये किंतु परिणाम कुछ संतोष जनक न निकला कारण आजका शिक्षित सभ्य समाज ऐसा बुध्धू नहीं है कि वह इन कल्पित लेखोको सच्चे समझ कर अपनी भावनाओमें परिवर्तन करदे । आज समाज पहिले की अपेक्षा बहुत आगे बढ़ चुका है। पुराना लकीर का फकीर नहीं रहा है अतः कल्पित लेखो पर उसे विश्वास भी कैसे होवे ?
जब उन लेखोंसे समाज पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा तब कई एक चालबाजों ने भोले भावुक जीवों को भड़काने के लिये दूसरी चाल चलना शुरु कां कि-स्थानक-.