SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ કાનામાના મુનિશ્રી દાદરકર રાકેશ રાવલ (મહાવીર જયંતિ પ્રસંગે જૈન ભારતી એ સમન્વય અંક કાઢયે હતો. એ અંકમાં વિવિધ લેખકેએ આપણા સકલ સમાજને એક થવાની હાકલ કરી હતી. મુનિશ્રી રાકેશે સમન્વયના સંદર્ભમાં કેટલાક વિશિષ્ઠ પ્રસંગે આલેખ્યા હતા, જે અત્રે તેમના તેમજ રજુ કરવામાં આવે છે.) एक दिन पति-पत्नी में विवाद चल पड़ा। पति ने कहा-आजकल व्यापार में नाना प्रकार की कानूनी कठिनाइयाँ हैं, इसलिये पुत्र को वकील बनाऊँगा | 'किन्तु भावावेश में आकार पत्नी ने कहा-नहीं-नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, मैं हर समय बीमार रहती हूँ, इसलिये पुत्र को डाकटर बनाना है। दोनों का विवाद घन्टों तक चलता रहा किन्तु किसी भी प्रकारका निर्णय नहीं हो सका। इतने में एक बुद्धिमान् मनुष्य वहाँ आ गया। उसने झगडे का कारण पूछा । पति-पत्नी ने सारी बात बतलाई । आगन्तुक ने सहज भाव से कहा-यदि पुत्र वकील बनना चाहे तो उसे वकालत पढ़ाई जाए तथा डाकटर बनना चाहे तो डाक्टरी पढाई जाए। पुत्रको बुलाओ, मैं अभी फैसला कर देता हूँ, इसमें झगड़ने की क्या बात है ? उसका कहना पूरा ही नहीं हुआ कि पति-पत्नी हँसने लगे। उन्होंने कहा-" अभी पुत्र का जन्म ही कहाँ हुआ है, यह तो आगे की कल्पना है। समन्वय के लिये यह आवश्यक है कि जो प्रश्न आध्यात्मिक साधना और भावना से व जीवन से सम्बन्धित नहीं है, उसके लिये होने वाले काल्पनिक कलहों और विवादों में शक्ति को नष्ट नहीं किया जाय ।
SR No.522168
Book TitleBuddhiprabha 1965 07 SrNo 68
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Shah
PublisherGunvant Shah
Publication Year1965
Total Pages64
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Buddhiprabha, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy