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भुमि
[ii. 10-5-1८६५
हरि गरज्यो, हरि ऊपज्यो, हरि आयो हरि पास ।
जब हरि हरि में गयो, तब हरि भयो उदास ।। इसका अर्थ है-बादल गरजा-बरसा, मेंढक पैदा हुआ, साँप मेंढक के पास आया किन्तु, जब मेंढक पानी में चला गया तो माँप उदास हो गया।
इस मध्य में हरि शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त किया गया है। माषा का भण्डार अपार है । किस शब्द को कहाँ किस अर्थ में काम में लिया गया है, यह समझना कभी-कभी बड़े-बड़े पण्डितों के लिये भी कठिन हो जाता है।
समन्वय के लिये यह आवश्यक है कि शान्दिक खींचातानी में न पड़ सरलता से शुभ आशय को ग्रहण किया जाय ।
एक बार एक पादरी, मौलवी ओर सन्यासी साथ-साथ जा रहे थे। रास्ते में एक रुपैया मिला। पादरी ने कहा-" इससे ग्रेप्स खरीद"। मौलत्री ने कहा---- 'अंगूर खरीदेगें'। सन्यासी ने कहा—'नहीं-नहीं मुझे द्राक्षाफल अच्छे लगते हैं, वही खरीदेगें।
दोनों का मतलब एक था, पर शब्द भिन्न थे।
समन्वय के लिये यह आवश्यक है कि दूसरा क्या कहता है, उसे शान्ति से समझने का प्रयास किया जाय। कभी-कमी हमारे कहने का जो मतबल होता है, सामने वाले का भी वही होता है। किन्तु मानसिक स्थिति आवेश और असहिष्णुता से प्रभावित होने के कारण बिना मतलब पलझन पैदा हो जाती है व परस्पर अशान्ति बढ़ जाती है।