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________________ सम्पादकीय “प्राकृत भाषा के साहित्यिक रूप लेने पर लोकभाषा के रूप में अपभ्रंश भाषा का उदय और विकास हुआ। जैन आचार्यों ने लोकभाषा के रूप में अपभ्रंश भाषा को अपनाया और अपभ्रंश में भी साहित्य का सृजन किया। यह क्रम 7वीं शताब्दी से 17वीं शताब्दी तक लगभग एक हजार वर्ष तक प्रवहमान रहा।" “शक सम्वत् 999 (विक्रम सम्वत् 1134) में ‘पउमकित्ति (मुनि पद्मकीर्ति) विरचित 'पासणाहचरिउ' अपभ्रंश भाषा का विश्रुत पार्श्वचरित काव्य है, जिसमें पार्श्वनाथ के पूर्व भव मरुभूति और कमठ के भवों के क्रमशः सदाचार और अत्याचार की कहानी है, जो उत्तरपुराण पर आधारित है।' ___ “यहाँ यह उल्लेख्य है कि पार्श्वनाथ कोई पुराणपुरुष ही नहीं थे अपितु वे एक ऐतिहासिक महापुरुष थे।" __ "मुनि पद्मकीर्ति ने ‘पासणाहचरिउ' को 18 संधियों में विभक्त किया है। संधियाँ पुनः कड़वकों में विभक्त हैं। प्रत्येक संधि में कड़वकों की संख्या भिन्न है। पूरे ग्रन्थ में 314 कड़वक हैं। प्रायः एक कड़वक में 10-12 पंक्तियाँ हैं, पूरे ग्रन्थ में पंक्तियों की संख्या 3640 है।" __ “विवेच्य ‘पासणाहचरिउ' में महाकाव्य के प्रायः सभी लक्षण विद्यमान हैं। ग्रन्थ का प्रारंभ 24 तीर्थंकरों को नमस्कार एवं उनकी स्तुति से होता है।" “पद्मकीर्ति ने ‘पासणाहचरिउ' में सातवीं सन्धि तक पार्श्व के पूर्व जन्मों का वर्णन किया है, वह आचार्य गुणभद्र के उत्तरपुराण में भी यत्किंचित् मिलता है।" ___" ‘पासणाहचरिउ' का सम्पूर्ण आख्यान कर्म-सिद्धान्त का प्रतिपादन करता है। पार्श्वनाथ अपने प्रत्येक उत्तरोत्तर जन्म में अधिकाधिक अच्छे कार्य करते हुए बताये गये हैं और फलतः ऊँचे से ऊँचे स्वर्गों में स्थान पाते हैं। इसके विपरीत कमठ अपने जन्मों में बुरे से बुरे कर्म करता है और इसी संसार में तथा नरकों में अनेक दुःख पाता है। कर्म (vii)
SR No.521864
Book TitleApbhramsa Bharti 2014 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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