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अपभ्रंश भारती 21
4. Bombay University Journal Vol. II, 1933-4, Apabhramsa Metres by Dr. H.D. Velankar, p. 34.
5. प्राकृत - पैंगलम् भाग - 2, संपादक
डॉ. भोलाशंकर व्यास, पृ. 317 6. संस्कृत बहुत कुछ संश्लिष्ट भाषा है, उसकी विभक्तियाँ शब्दों में संयुक्त रहती हैं, उसमें संधि और समास की बहुलता है। फलतः वर्णों की श्रृंखला - सी बन जाती है। ऐसी भाषा में वर्णिक छन्द ही अधिक अनुकूल पड़ सकते थे - निदान, वहाँ वर्णिक छन्दों की ही प्रधानता रही। हिन्दी की प्रकृति एकांत विश्लेषण प्रधान है; अतएव, उसकी रुचि स्वभाव से ही मात्रिक छन्दों की ही रही। वीर गाथा काल में वर्णिक छन्दों का भी प्रयोग हुआ, परन्तु उनकी अपेक्षा दोहा, छप्पय, पद्धटिका आदि मात्रिक छन्द ही कहीं अधिक प्रचलित थे।
डॉ. नगेन्द्र, पृ. 244
देव और उनकी कविता जगन्नाथ प्रसाद 'भानु', पृ. 91
7. छन्द प्रभाकर 8. सिद्ध साहित्य, डॉ.
धर्मवीर भारती, पृ. 293-4
9. हिन्दी साहित्य का आदिकाल, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, पंचम व्याख्यान, पृ. 98-99
10. जिस समय सिद्धों ने दोहा छन्द अपनाया, उसका स्वरूप स्थिर नहीं हुआ था। बौद्धों की परम्परा में कई प्रमाण ऐसे मिलते हैं, जिनसे दोहों की गेयता सिद्ध होती है। ऐसे दोहों को 'वज्रगीति' कहते थे। 'साधनमाला' में बुद्ध कपाल की साधना में 4 दोहों की एक वज्रगीति मिलती है। ' हे वज्रतंत्र' में भी दो वज्र गीतियाँ मिलती हैं। इन सभी गीतिकाओं को वज्रयानी - साधनाओं में गाने और कभी-कभी उन पर नृत्य करने का विधान भी मिलता है।
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11. अपभ्रंश भारती, अंक 8 नवम्बर 1996, पृ. 21-26
12. संदेश रासक, संपादक पृ. 58
13. हिन्दी साहित्य का आदिकाल, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, पृ. 103 14. संदेश रासक - भूमिका, पृ. 53
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सिद्ध-साहित्य, डॉ. धर्मवीर भारती, पृ. 294
जिनविजय मुनि एवं डॉ. हरिवल्लभ भायाणी, भूमिका
15. When all the lines have a common rhyme, This metre is called 'Adila' but when the 3rd & 4th lines have a different rhyme, is called 'Medila'.
- Bombay Univ. Journal, Vol. II, 1933-34, Apabhramsa metres, page 41.