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अपभ्रंश भारती 21
नयरि मणोरमभुअणपइवहो..... दुवई - बारहजोयणाइँ दीहत्ते नवजोयण सुवित्थरा।
___ सग्गु वि वीसरंति सा पेक्खिवि मोहियमाणसामरा।।1।। नयरिमणोरमभुअणपइवहो
तिलयभूय जा जंबूदीवहो। मंडालंकियाइँ उज्जाण'
बाहिरि अब्भंतरि निवथाणईं। जहिँ बाहिरे वाडीउ सतालउ
अब्भंतरि पुणु नच्चणसालउ। सरपालिउ विडंगनहवणियउँ
बाहिरि अब्भंतरि पुणु गणियउँ। मुणिवरमंडियकीलामहिहर
बाहिरि अब्भंतरि चेईहर। वाविउ सुपओहरउ सुरमणिऊँ बाहिरि अब्भंतरि वररमणिउ। सहलसुपत्तई मंडवथाण'
बाहिरि अब्भंतरि जणदाण। बाहिरि वाहियालि हरिसंगय
अब्भंतरि वसंति नायरपय। बाहिरि गयउलाइँ रयणरुय
अब्भंतरि सहति डिंभरुय.। घत्ता - गुणमंदिरु नयणाणंदिरु वज्जयंतु तहिँ रज्जधरु। __ रणसूरहो परबलु दूरहो जसु नामेण वि वहइ डरु।।2।।
महाकवि वीर, जंबूसामिचरिउ, 3.2 बारह योजन लंबी और नौ योजन विस्तृत उस नगरी को देखकर मोहित हुए मनुष्य व देव स्वर्ग को भी भूल जाते हैं। वह मनोरम नगरी भुवन के प्रदीपरूप जंबूद्वीप की तिलकभूत है। उस नगरी के बाहर अनेक वृक्षगुल्मों व लतामंडपों से अलंकृत उद्यान हैं व भीतर सर्वत्र नाना प्रासादों (मंड) से अलंकृत राजकुल हैं। वहाँ बाहर तालाबोंसहित वाटिकाएँ हैं व भीतर तालमंजीर इत्यादि वाद्यवादन से युक्त नृत्यशालाएँ। बाहर विडंग वृक्षों से ललित सरपाली अर्थात् सरोवरपंक्तियाँ हैं व भीतर गणिकाएँ हैं। बाहर मुनिवरों से शोभायमान क्रीडापर्वत हैं और भीतर चैत्यगृह।
र स्वच्छ जलवाली अत्यन्त रमणीय वापियाँ हैं. व भीतर अतिरमणशील संदर रमणियाँ बाहर (उद्यानों में) सुन्दर फलों व पत्रों से युक्त मंडपस्थान हैं तथा भीतर मनोवांछित फल देनेवाला सपात्र दान किया जाता है। बाहर अश्वों सहित अश्व क्रीडास्थल हैं और भीतर नागरिक प्रजा रहती है। बाहर गजकल अपने दाँतों की दीप्ति से व भीतर बालक अपने रत्नाभरणों की कांति से शोभायमान हैं।
पत्ता - वहाँ गुणों का निवास तथा नयनों को आनन्द देनेवाला वज्रदंत नाम का राजा था, जिस रणशूर के नाम से ही शत्रुबल दूर से ही भयभीत हो जाता था।
अनु. - डॉ. विमलप्रकाश जैन