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अपभ्रंश भारती 21
अक्टूबर 2014
पउमकित्ति विरचित : 'पासणाह चरिउ'
(अपभ्रंश भाषा का प्रमुख महाकाव्य)
- डॉ. प्रेमचन्द्र रांवका
अपने जन्म से 'वाराणसी' को पावन एवं प्रथित बनानेवाले 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के प्रति अतिशय श्रद्धा और 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर के पूर्ववर्ती-निकटवर्ती तीर्थंकर होने से उनके (तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के) प्रभावीप्रेरक पूर्वभवों का वर्णन एवं जीवनवृत्त संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश के कवियों को विशेष प्रिय रहा है। उनके पूर्व व वर्तमान भवों से सम्बन्धित 15 से भी अधिक चरित काव्य उपलब्ध होते हैं। 'जिन रत्नकोश' के अनुसार तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के नाम से रचे गये पुराणों की संख्या 11 है। श्वेताम्बर परम्परा में प्रथम पार्श्व-चरित 'सिरि पासनाह चरित' देवभद्र सूरि ने लिखा है। तत्पश्चात् हेमचन्द्राचार्य का 'त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित' है। दिगम्बर परम्परा में सर्वप्रथम आचार्य गुणभद्र का श. सं. 827 का 'उत्तरपुराण' परवर्ती कवियों के लिए आधारभूत ग्रन्थ रहा है। जिनसेन द्वितीय का पार्वाभ्युदय' सं. 840 में रचा मेघदूत की समस्या पूर्ति में 334 मदाक्रान्ता छन्दों में निबद्ध सन्देश काव्य है। पुष्पदन्त कृत महापुराण में 'पार्श्वचरित' भी है। वादिराज सूरि का श.सं. 947 (वि.सं. 1042) में रचा गया 'पार्श्वनाथ चरित' प्रथम स्वतंत्र महाकाव्य है। सं. 1189 का श्रीधर का ‘पासणाह चरिउ', सं. 1276 में रचित माणिक्यचन्द्र सूरि का