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अपभ्रंश भारती 21
105
5.3
चउथउ
पुणु कालु कमेण आउ उप्पण्णु जणहो वहि धम्मभाउ तहो दुसमु-सुसमु
चौथा फिर काल क्रम से आया उत्पन्न हुआ लोगों में वहाँ धर्म-भाव उस (काल) का दुखमा-सुखमा
5.4
यह
णाउ कहिउ
वा
नाम कहा गया पादपूरक अव्यय काल वर्ष सहस्रों
याल वरिस सहसेहिं रहिउ
रहा
5.5
सो
वह
एक्क कोडिकोडिहिं
सायरह गणिउ कालहं समूह उप्पण्णु तित्थु तित्थयर-देव चक्केसर
एक कोडाकोडी कही गई सागर की गणना काल का समूह उत्पन्न हुए चतुर्विध संघ तीर्थंकर-देव चक्रवर्ती
5.6