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अपभ्रंश भारती 21
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7.1 (फिर) छठा 'दुसम - दुसम' (दुखमा दुखमा) काल अत्यन्त भीषण, दुःखभरा होगा।
7.2 वहाँ (मनुष्यों की) आयु सोलह वर्ष और ऊँचाई एक हाथ होगी।
उस काल में व्रत, नियम, धर्म नहीं होगा; सब लोग अशुभ कर्म करेंगे। 7.4 लोग पर्वत-गुफा में, दुर्गम जल-थल में, वन के भीतर निवास करेंगे।
7.5 (लोग) धन-धान्य से रहित, दुर्बल शरीरवाले ( होंगे), (वे) कन्दमूल, उदुम्बर, करीर (आदि जंगली वृक्षों के फलों) का आहार करेंगे।
7.3
7.6 (लोग) क्रय-विक्रय (व्यापार) से, श्रेष्ठ व्यवहार से भ्रष्ट / च्युत ( होंगे), स्नेहप्रेम से रहित, विकलांग (पंगु ) व पलायनवादी होंगे।
7.7 (लोग) पापी, दुष्ट, दुर्विनीत, अनिष्ट कर्म करनेवाले, ढीठ (तथा) रोगव्याधि से युक्त होंगे।
7.8 (वे) आपस में / परस्पर कठोर, निष्ठुर व अल्पबुद्धि (ज्ञान) होंगे, परस्पर कुत्सित मन व शरीरवाले होंगे।
7.9 धर्म से रहित यह छठा काल अत्यन्त दुःख का जाल कहा गया है।
7.10 घत्ता - इसका परिमाण इक्कीस हजार वर्ष कहा गया है। जिनेन्द्र (भगवान) के द्वारा कहे गये ये छः काल संक्षेप में समझो।
इति कालावली की जयमाल