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________________ अपभ्रंश भारती 19 83 लोक-भावना अर्थ - अधोलोक सात राजू-प्रमाण स्थित है। मध्यलोक में भी एक द्वीप सम्यक रूप से स्थित है। तथा ऊर्ध्वलोक पाँच राजू-प्रमाण स्थित है। इसके भी ऊपर एक राजू ऊँचाई धारण किये है। तीन सौ तैतालीस धनुष प्रमाण ऊँचा जो लोक है समस्त सागरों से अलंकृत है। मुनिसुव्रतनाथ भगवान के चरणों में नमस्कार करके (बारह अनुप्रेक्षाएँ (भावनाएँ) कहता हूँ) ॥15॥ आसव-भावना अर्थ - मिथ्यात्व (पाँच प्रकार का), संयम (दो), योग (पन्द्रह), कषाय (पच्चीस) आदि के द्वारा; रोग, शोक, भय, मोह, प्रमाद (पन्द्रह) आदि के द्वारा; समरंभ-समारंभ-आरंभ आदि कारणों से, मन-वचन-काय तथा कृत-कारित-अनुमोदना सहित जीव के कर्मास्रव होता है और उसके फलस्वरूप शुभाशुभ फल पाता है। मुनिसुव्रतनाथ भगवान के चरणों में नमस्कार करके (बारह अनुप्रेक्षाएँ (भावनाएँ) कहता हूँ) ।।16।। संवर-भावना अर्थ - क्रोध के अभाव से क्षमा, अज्ञान के अभाव से ज्ञान, माया के अभाव से आर्जव, मान के अभाव से मार्दव, मिथ्यात्व के अभाव से जिनेन्द्र के वचनों का अनुसरण, लोभ के अभाव से मन में संतोष ठहराया जाता है। संयम करने से असंयम का अभाव होता है। इस प्रकार अपने मन में संवर की भावना भायी जाती है (करनी चाहिए)। मुनिसुव्रतनाथ भगवान के चरणों में नमस्कार करके (बारह अनुप्रेक्षाएँ (भावनाएँ) कहता हूँ) ||17 ।। निर्जरा-भावना अर्थ - पंच-महाव्रत, पंच-समिति और तीन गुप्तियाँ मन, वचन, काय को अशुभ प्रवृत्तियों से रोकते हैं। मुनि बाइस परीषह भी सहते हैं। बारह भावनाओं का चितवन करते हुए धर्म के स्वरूपानुसार चारित्र को आचरते हैं। जिनेन्द्र भगवान ने जो आस्रव और निर्जरा का स्वरूप कहा है वह श्रेष्ठ उपशान्त मोहवाले मुनियों के ही होता है। मुनिसुव्रतनाथ भगवान के चरणों में नमस्कार करके (बारह अनुप्रेक्षाएँ (भावनाएँ) कहता हूँ) ।।18।।
SR No.521862
Book TitleApbhramsa Bharti 2007 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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