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________________ 80 संसार-भावना पुत्तु वि वप्प तणउ पडिवज्जइ । सामि मरेवि भिच्चु उप्पज्जइ । इय संसार अवत्थ मुणिज्जइ । विवि चलण मुणिसुव्वयहो ॥11॥ वप्पु मरेवि पुत्तु उप्पज्जइ' जणणि सहोयरि कंत सुया अरि बंधव बंधव अरि जम्मइ संसार-भावना सत्त- सत्त लक्खइं' जिय जोणिहिं । चारि - चारि सुर - नारइय' - तिरयहं । चउदह नरहं एम लक्ख चउरासी कहियइ | विवि चलण मुणिसुव्वयहो ॥12 ॥ णिच्चेयर जलग्गि मरु खोणिहिं छह लक्खड़' वियलिंदय' याणह दह रुक्खह अशुचि-भावना असुइ सरीरु असुइ संपण्णउ असुइ चिलिच्चिल' देहघरु णीसारइ षणभंगुरइ विवि चलण मुणिसुव्वयहो ॥13॥ लोक अपभ्रंश भारती 19 दुग्गंधउ किमिकुल संच्छण्णउ । रसवस सोणिय मंस समिद्धई । केम वियक्खणु' तहि रइवद्धइं । 6- भावना वेतासण पवि मंदल आयारउ तिहुपवण परिवेढिय केण वि धरिउ ण णिमियउ तलि मज्झहं उप्परि वित्थारउ चउदह रज्जु लोउ दीहतें । सयल वि जीवह भरिउ पयत्तें । विवि चलण मुणिसुव्वयहो ॥14॥
SR No.521862
Book TitleApbhramsa Bharti 2007 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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