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________________ अपभ्रंश भारती 19 अक्टूबर 2007-2008 63 'पउमचरिउ' में संज्ञा शब्दों के प्रयुक्त पर्यायवाची शब्द - श्रीमती सीमा ढींगरा मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहते हुए उसे अपने मन के भावों या विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए या दूसरों के विचारों या भावों को ग्रहण करने के लिए भाषा की आवश्यकता होती है। भारतीय आर्यभाषाओं की श्रृंखला में 'अपभ्रंश' का स्थान एक ओर प्राकृत तथा दूसरी ओर हिन्दी आदि आधुनिक आर्यभाषाओं को जोड़नेवाली कड़ी के रूप में है। इसी से आधुनिक भारतीय भाषाओं का जन्म हुआ है। किसी भी भाषा की अभिवृद्धि में शब्दों के पर्यायवाची का बहुत महत्त्व होता है। वस्तुतः वे शब्द भाषा के विपुल वैभव को प्रकट करते हैं। एक ही अर्थ के वाचक अनेक शब्द जिनका समान भाव हो पर्यायवाची शब्द कहलाते हैं। प्रस्तुत लेख में महाकवि स्वयंभू के ‘पउमचरिउ' में संज्ञा शब्दों के प्रयुक्त पर्यायवाची शब्द दिये जा रहे हैं। 'स्वयंभू' को अपभ्रंश भाषा का प्रथम महाकवि होने का श्रेय प्राप्त है। अब तक ज्ञात एवं प्राप्त अपभ्रंश साहित्य में स्वयंभू ही सबसे प्राचीन कवि हैं, इसलिए साहित्य जगत में 'स्वयंभू' अपभ्रंश के आदिकवि माने जाते हैं। स्वयंभूरचित काव्यों में पउमचरिउ' रामकथात्मक काव्य है। पउमचरिउ की भाषा साहित्यिक, पाण्डित्यपूर्ण और प्रांजल है। ‘पउमचरिउ' में संज्ञा शब्दों के प्रयुक्त पर्यायवाची
SR No.521862
Book TitleApbhramsa Bharti 2007 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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