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________________ अपभ्रंश भारती 19 और कहीं जाल बिछाने की बात की है । सिद्ध कण्डपा की एक चर्या से ज्ञात होता है कि उस समाज में शतरंज के खेल का भी प्रचलन था । वे करुणा की झलक पर से शतरंज खेलते हैं। इसी प्रकार वीणापा ने अपनी चर्या द्वारा वीणा के निर्माण एवं वादन का भी अच्छा चित्रण किया है। उनकी वीणा में सूर्य की तूंबी और चन्द्र की ताँत है । 49 निष्कर्ष यह कि चर्या पदों के अन्तर्गत कतिपय ऐसे चित्रणों पर ध्यान जाता है तो लगता है इन लोगों ने समकालीन समाज की स्थिति, उसके कुछ सदस्यों की मनोवृत्ति, रहन-सहन, प्रथाओं तथा मनोरंजन साधनों का कुछ न कुछ संकेत किया है। जहाँ तक नाथधारा का सम्बन्ध है ऊपर उनके सिद्धान्तों का कुछ परिचय दिया जा चुका है । समाज - निर्धारक संस्कृति के आत्मवादी दृष्टि से निर्गत मूल्यों की चर्या पहले की जा चुकी है और गोरखबानी में ऐसे मूल्यपरक उपदेश भरे हुए हैं जिनकी तत्कालीन समाज में मान्यता थी - तनक न बोलिवा, ठबकि न चलिवा धीरै धरिवा पाँव । गरब न करिवा, सहजै रहिवा, भणत गोरख राँव ॥27॥ - ( गोरखबानी, पृष्ठ 11 ) वैज्ञानिक दृष्टि से निर्धारित संस्कृति घटकों के भी अप्रस्तुत रूप में संकेत मिलते हैं। अप्रस्तुत ही नहीं, प्रस्तुत रूप में भी समाज की उपयोगी बात कहते हैं . - लिया न स्वाति, बैद र रोगी, रसायणी अरव्यचि घाय । बूढ़ा न जोगी सूरा न पीठि पाछै घाव यतनां न मानै श्री गोरखराय ।।210॥ ( गोरखबानी) जो स्त्री स्वाति जल के लिए चातक के समान पति-प्रेम नहीं रख सकती, वह स्त्री नहीं । वैद्य अगर वस्तुतः वैद्य है तो उसे रोग नहीं व्याप सकता । रसायनी को, जो लोहे आदि नीची धातुओं को सोने में बदलने का दावा करता है, माँगकर खाने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए । को बुढ़ापा नहीं आना चाहिए। शूर की पीठ पर घाव नहीं हो सकता। यदि इन लोगों में ये बातें पाई जाएँ तो ये क्रमशः वे जो हैं - वे हैं । - अप्रस्तुत के सहारे इन नाथों ने भी अभिव्यक्ति की है, जैसे - नाक न निकसे, बूंद न ढलकै, सहज अंगीठी भरि भरि रॉधै । सिध समाधि योग अभ्यासी, तब गुरु परचै साँधै ॥44 ॥ यहाँ भोजन बनाने की प्रक्रिया अप्रस्तुत है । इसी प्रकार एक नट-विद्या है कि खम्भे और डोरी के सहारे आसमान पर पहुँच जाता है, यह भी अप्रस्तुत ही है -
SR No.521862
Book TitleApbhramsa Bharti 2007 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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