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________________ अपभ्रंश भारती 19 कथा-काव्य में स्थान-स्थान पर गीति-शैली के भी दर्शन होते हैं। दैवी-संयोग और आकस्मिक घटनाओं की संयोजना से काव्य में आद्यन्त उत्सुकता एवं कुतूहल बना रहता है। इसीलिए उसमें रोचकता एवं मधुरता की कमी नहीं है। कवि ने विभिन्न स्थलों पर इसके माध्यम से नाटकीय दृश्यों की संयोजना भी सफल रूप में की है, जिससे पाठक के मन में तरह-तरह की कल्पनाएँ उभरती हैं। वास्तव में इस प्रकार की विशेषताएँ बहुत कम काव्यों में दिखलाई पड़ती हैं। ___ काव्य में कवि का शब्द-विन्यास सुन्दर रूप में है और भाषा प्रांजल व सुष्ठ है। उसमें सूक्तियों, कहावतों एवं मुहावरों का सुन्दर प्रयोग हुआ है, जिनसे भाषा और भावों में सजीवता आ गई है। यह रचना काव्य-कला की दृष्टि से अपभ्रंश के प्रेमाख्यानक काव्यों में उत्कृष्ट है और कथानक रूढ़ियों के अध्ययन की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। भाव, भाषा एवं शैली की दृष्टि से यह अत्यन्त सम्पन्न तथा प्रसाद गुण से युक्त काव्य है। यद्यपि प्रायः सभी रसों की संयोजना इस काव्य में हुई है, किंतु मुख्य रूप से विप्रलम्भ शृंगार का प्राधान्य है। अतः काव्य कथा की विशेषताओं को देखते हुए यह निस्संदेह कहा जा सकता है कि वास्तव में यह कवि अपनी इस सुंदर कृति के द्वारा अमर हो गया। 1. एक्कारसहिं सएहिं गएहिं तेवीस वरिस अहि गहिं। पोस चउद्दसि सोमे सिप्रा धधुंक्कय पुरम्मि ।। • धन्धुका नाम का नगर गुजरात प्रदेश में अहमदाबाद के निकट है। इस नगर में ही कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र सूरि तथा 'सुपासनाहचरियं' के रचयिता मलधार-गच्छीय लक्ष्मण गणि जैसे विद्वानों का जन्म हुआ था। 2. एसा य गणिज्जंति पाएणा णुट्ठभेण छदेण। संपुण्णाहं जाया छत्तीस सयाई वीसाई।। 3. समराइच्चवहाउ उद्धरिया सुद्ध संधिबधेण। कोऊहलेण एसा पसन्नवयणा विलासवई।। - - -
SR No.521862
Book TitleApbhramsa Bharti 2007 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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