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________________ अपभ्रंश भारती 19 सोहइ हलहरजत्थहिं करिमयरमीणजलयरवमालि चललवणजलहिवलयंतरालि। दोचंदसूरपयडियपईवि जंबूतरुलंछणि जंबुदीवि। खारंभोणिहिसामीवसंगि सुरसिहरिहि संठिउ दाहिणंगि। सरिगिरिदरितरुपुरवरविचित्तु एत्थत्थि पसिद्धउ भरहखेत्तु । तहु मज्झि परिट्ठिउ मगहदेसु जं वण्णहुं सक्कइ णेय सेसु। मुहि घुलइ जासु जीहासहासु जसु णाणि णत्थि दोसावयासु। घत्ता - सीमारामासामहिं पविउलगामहिं गज्जंतहिं धवलोहहिं। सोहइ हलहरजत्थहिं दाणसमत्थहिं णिच्चं चिय णिल्लोहहिं॥11॥ महाकवि पुष्पदन्त, महापुराण, 1.11 - जलगजों, मगरों, मत्स्यों और जलचरों के कोलाहल से व्याप्त चंचल लवण समुद्र के वलय में स्थित, दो-दो सूर्यों और चन्द्रों से आलोकित होनेवाले तथा जम्बुवृक्षों से शोभित जम्बूद्वीप है। उसमें सुमेरु पर्वत के, लवण समुद्र की समीपता करनेवाले दक्षिण भाग में प्रसिद्ध भरत क्षेत्र है, जो नदियों, पहाड़ों, घाटियों, वृक्षों और नगरों से विचित्र है। उसके . मध्य में मगध देश प्रतिष्ठित है, शेषनाग भी उसका वर्णन नहीं कर सकता, यद्यपि उसके मुँह में हजार जीभें चलती हैं, और उसके ज्ञान में दोष के लिए जरा भी गुंजायश नहीं है। घत्ता - वह मगध देश, सीमाओं और उद्यानों से हरे-भरे बड़े-बड़े गाँवों, गरजते हुए वृषभ समूहों, और दान देने में समर्थ लोभ से रहित कृषक समूहों से नित्य शोभित रहता है।।11॥ अनुवादक - डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन
SR No.521862
Book TitleApbhramsa Bharti 2007 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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