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________________ अपभ्रंश भारती 19 3. जैन तथा उपाध्ये, पउमचरिउ, भाग 5 की भूमिका, पृ. 11 4 अपभ्रंश के आदिकवि स्वयम्भू, त्रिलोकीनाथ प्रेमी, अपभ्रंश भारती-1, पृ.1, जनवरी,1990 5. अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, वीरेन्द्र श्रीवास्तव, पृ. 16 6. पायडमि अप्पु रामायण कावे। पउमचरिउ, 1.1.19 7. पउमचरिउ और रामकथा परम्परा, मधुबाला नयाल, अपभ्रंश भारती 5-6, पृ. 13, 1994 8. अपभ्रंश के आदिकवि स्वयम्भू, त्रिलोकीनाथ प्रेमी, अपभ्रंश भारती-1, पृ. 3 9. प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य और उसका हिन्दी साहित्य पर प्रभाव, डॉ. रामसिंह तोमर, प्रकाशक - हिन्दी परिषद् प्रकाशन, प्रयाग विश्वविद्यालय, प्रयाग, पृ. 67 10. महाकवि पुष्पदन्त, राजनारायण पाण्डेय, पृ. 126 11. उक्त, पृ. 135 12. पाउडदोहा, प्रस्तावना, देवेन्द्रकुमार शास्त्री, पृ. 3 13. पउमचरिउ, 1.10.3 14. अपभ्रंश रामकाव्य परम्परा में पउमचरिउ, मंजु शुक्ल, अपभ्रंश भारती-9-10, पृ. 21 अक्टूबर 1997-98 15. • जय इन्द णरिन्द चन्द णमिय। प.च. 23.10.7 • त णागेन्द सुरेन्द णरिन्दहि। वन्दिउ मुणि विज्जाहर विन्दहि। प.च. 25.7.7 .तिलोय लोय वदण। प.च. 40.1.4 • सुरिंद राय पुज्जण। प.च. 40.1.5 • जय तियसिद विद वंदिय पय। प.च. 2.6.7 16. पज्जुण्णचरिउ, प्रस्तावना, विद्यावती जैन, पृ. 20 17. पउमचरिउ, प्रारंभ 18. पउमचरिउ, 71.11 19. पउमचरिउ, 32.7, 23.10, 43.19 20. पउमचरिउ, 32.7, 23.10 21. पउमचरिउ, 32.7, 23.10 22. पउमचरिउ, 86.15 23. पउमचरिउ, 2.6 24. पउमचरिउ, 44.5 25. पउमचरिउ, 71.11 26. पयहिण देवि तिवार पुणु चलियउ वण वासहो। 23.10.13 • त जिण भवणु णियवि परितुट्टई। पयहिण दवि तिवार वइट्ठइ। 25.7.5
SR No.521862
Book TitleApbhramsa Bharti 2007 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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