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अपभ्रंश भारती 19
गए भोजन का वैशिष्ट्य कवि स्वयंभू सामान्य वर्णनात्मक शैली में नहीं, रूपकों एवं श्लेष द्वारा सज्जित बिम्बमालाओं रचते हैं
रेहइ असण-वेल बलहद्दहों । णाइँ विणिग्गय अमय - समुद्दहों । धवल-प्पउर-कूर- फेणुज्जल। पेज्जावत्त दिन्ति चल चञ्चल । धिय- कल्लोल - वोल पवहन्ती । तिम्मण-तोय-तुसार मुअन्ती । सालण-सय-सेवाल - करम्विय । हरि - हलहर - जलयर - परिचुम्बिय । किं बहुचविण सच्छाउ सलो स- विञ्जणु । इट्ठ-कलत्तु व तं भुत्तु जाहिच्छऍ भोयणु । 25.11। पच्चीसवीं सन्धि में कल्याणमाला के प्रसंग में तथा पचासवीं सन्धि के सीताहनुमान के भेंट-प्रसंग में भी नाना व्यंजनों का परिगणन हुआ है।
काम - दशा - वर्णन - प्रसंग 'पउमचरिउ' में विद्यमान काम- दशा वर्णन - प्रसंग उपमान-प्रयोगों, रूपक, मानवीकरण आदि से समृद्ध है । अनेक स्थलों पर आए ऐसे प्रसंगों में काम - दशा - प्रभावित पात्रों में स्त्री और पुरुष दोनों ही हैं नलकूबर की पुत्रवधू, शूर्पणखा, वनमाला, भामण्डल, रावण आदि । ऐसे स्थलों में विरह की दस दशाओं के चित्रण में कवि ने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है।
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चिन्त पढम-थाणन्तरें लग्गइ। वीयऍ पिय मुह दंसणु मग्गइ | तइयऍ ससइ दीह - णीसासें । कणइ चउत्थऍ जर विण्णासें । पञ्चमें डाहें अङ्गु ण मुच्चइ । छट्ठऍ मुहों ण काइ मि रुच्चइ । सत्तर्मे थार्णे ण गासु लइज्जइ । अट्ठमें गमणुम्माएहिं भिज्जइ । णवमॅ पाण संदेहों दुक्कइ । दसमऍ मरइ ण केम वि चुक्कई । 21.9।
जायसी के पद्मावत में राजा रत्नसेन भी पद्मावती के दर्शन कर इसी दशा को प्राप्त होता है। सूफी कवियों ने विरह-दशा चित्रण का यह रूप अपभ्रंश साहित्य से परम्परा-रूप में प्राप्त किया हो तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं ।
काव्य का उपमानरूप में प्रयोग
काव्य-उपमानों एवं व्याकरणिक उपमानों का प्रयोग 'पउमचरिउ' के सौन्दर्य को मौलिक आयाम देता है।
कांट ने सौन्दर्य की दो जातियाँ कल्पित की हैं स्वायत्त एवं परायत्त । निरपेक्ष, सार्वभौमिक आनन्द देनेवाला सौन्दर्य स्वायत्त है और सौन्दर्य के बारे में विचार