________________
11
अपभ्रंश भारती 19 कामसुखदायिनी, सर्व आकर्षिणी, शक्तिसंवाहिनी, आसुरी, राक्षसी, वर्षिणी, दारुणी, दुर्निवारा, दुर्दशिनी आदि शक्तियाँ उसे विचलित करने का प्रयास करती हैं। रावण तप कर एक हजार विद्याएँ सिद्ध करता है और छः उपवास कर चन्द्रहास खड्ग।' ।
रावण-मन्दोदरी प्रथम-दर्शन-प्रसंग में कवि निवृत्ति-प्रवृत्ति का समन्वय भी चित्रित करता है। पउमचरिउ की बुनावट समझने के लिए प्रवृत्ति-निवृत्ति के समन्वय का स्वरूप समझना आवश्यक है। राम-सीता जीवन की प्रवृत्तियों में भाग लेते हुए, इनमें आसक्त होते हुए भी जीवन के अन्तिम क्षणों में विरक्ति (निवृत्ति मार्ग) अपना लेते हैं। दो भिन्न दार्शनिक दृष्टिकोणों की दो भिन्न परिणतियों को जीवन की पूर्णता और सार्थकता के लिए अनिवार्य मानते हुए प्रस्तुत काव्य प्रवृत्ति-निवृत्ति के समन्वय का मार्ग प्रशस्त करता है।
अरण्य काण्ड में भी कवि नाम-वर्णन कर जिनधर्म की मुनि परम्परा का एकबार पुनः स्मरण कराता है - विश्वनाथ, सम्भवनाथ, सुमतिनाथ, पद्मनाथ, पुष्पदन्त, शीतलनाथ, श्रेयांस, वासुपूज्य, विमलनाथ, अनन्तस्वामी, धर्म जिनेश्वर, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अर-अरहन्त, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रत आदि बीसों जिनवरों की वन्दना राम करते
रावण-उपवन-विनाश प्रसंग में कवि स्वयंभू एक-एक वृक्ष का नामोल्लेख कर हनुमान द्वारा उसके उखाड़े जाने की प्रक्रिया सम्पन्न करवाते हैं। पारिजात, वटवृक्ष, कंकेली (अशोक), नाग चम्पक, वकुल-तिलक, तालवृक्ष, सहार वृक्ष, तमाल आदि वृक्ष हनुमान द्वारा आयुध की भाँति प्रयोग किए जाते हैं -
तालेण अण्णु । तरलेण अण्णु । सालेण अण्णु। सरलेण अण्णु । चन्दणेण अण्णु। वन्दणेण अण्णु । णागेण अण्णु। चम्पऍण अण्णु । णिवेण अण्णु । पक्खेण अण्णु । सज्जेण अण्णु। अज्जुणेण अण्णु । पाडलिएँ अण्णु। पुप्फलिए अण्णु । के अइएँ अण्णु। मालइएँ अण्णु ।
अणेण्ण अण्णु हउ एम सेण्णु।51.14। काव्य की 56वीं सन्धि में विद्याधर-साधित विद्याओं का नाम-परिगणन हुआ है - पण्णत्ती, बहुरूपिणी, वैताली, आकाशतलगामिनी, स्तम्भिनी, आकर्षणी, मोहिनी, सामुद्री, रुद्री, केशवी, भोगेन्द्री, खन्दी, वासवी, बह्माणी, रौरवकारिणी, वारुणी, चन्द्री,