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अपभ्रंश भारती 19
का ही स्वरूप मानते हैं, जिसके कारण आवश्यक वस्तु का चित्र हमारे सामने उपस्थित हो जावे। नाम-परिगणन, वस्तु परिगणन द्वारा कवि के प्रकृति एवं पदार्थ-ज्ञान का परिचय तो मिलता ही है; साथ ही ये वर्णन तत्कालीन परम्पराओं और वनस्पतिश्रृंखलाओं के अन्वेषण में सहायक हो सकते हैं।
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नाम- परिगणन
शकटामुख उद्यान -वन-वर्णन में आया पुरिमताल उद्यान कवि - कल्पना - प्रसूत हो सकता है; पर वनस्पतियों के नाम कल्पित नहीं पुन्नाग, नाग, कर्पूर, कंकोल, एला, लवंग, मधुमाधवी, विडंग, मरियल्ल, जीर, उच्छ, कुंकुम, कुडंग, नवतिलक, पद्माक्ष, रुद्र, द्राक्षा, खर्जूर, जंबीरी, घन, पनस, निम्ब, हड़ताल, ढौक, बहुपुत्रजीविका, सप्तच्छद, दधिपर्ण, नंदी, मंदार, कुन्द, इंदु, सिन्दूर, सिन्दीवर, पाडली, पीप्पली, नारिकेल, करमंद, कन्थारि, करियर, करीर, कनेर, कर्णवीर, मालूर, श्रीखण्ड, साल, हिन्ताल, ताल, ताली, तमाल, जम्बू, आम्र, केचन, कदम्ब, भूर्ज, देवदारु, रिट्ठ, चार, कौषम्ब, सद्य, कोरण्ट, अच्चइय, जुही जासवण, मल्ली, केतकी, जातकी, वटवृक्ष आदि ।' रावण के उपवन वर्णन प्रसंग में भी अनेक वृक्षों के नाम-वर्णन विस्तार के साथ आए हैं।
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ऋषेश्वर ऋषभ-जिनपरम्परा - वर्णन से प्रारंभ हुआ प्रस्तुत काव्य भरतेश्वर और बाहुबलि प्रसंग के विविध अंशों भरत और बाहुबलि की सेना के परस्पर टकराव, बाहुबलि के आरंभ में ईर्ष्या - कषायवश केवलज्ञान प्राप्त करने में विलम्ब होना, भरत द्वारा धरती सौंपा जाना, चार घातिया कर्म विनष्ट होने पर केवलज्ञान की प्राप्ति के साथ विस्तार पाता है। इक्ष्वाकु वंश की परम्परा धरणीधर से आरंभ हुई है। तोयदवाहन के लंकापुरी में प्रवेश के साथ राक्षस वंश का पहला अंकुर फूटता है।' तोयदवाहन की परम्परा भी स्वयंभू द्वारा नाम- परिगणन के रूप में प्रस्तुत है। तोयदवाहन, महारक्ष, देवरक्ष, रक्ष, आदित्य, आदित्यरक्ष, भीमप्रभ आदि -आदि से आरंभ हुआ राक्षस वंश महारव, मेघध्वनि, ग्रहक्षोभ, नक्षत्रदमन, तारक, मेघनाद, कीर्तिधवल आदि नामों के साथ विस्तृत हुआ है। ये नाम काव्य-वस्तु के विस्तार में सहायक हुए हैं। इनमें ऐतिहासिकता का अन्वेषण कितना संभव है, यह पृथक् विचारणीय है; किन्तु, काव्य में निहित वर्णन-परम्परा को जोड़ने के लिए कवि ऐसी नाम - कल्पनाओं का सहारा लेता ही है; शायद ये भी उसी कड़ी को जोड़ते हों ।
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रावण की तपस्या भंग - प्रयास के प्रसंग में कवि पुनः नाम-वर्णन प्रयोग करता है - महाकालिनी, गगन - संचारिणी, भानु- परिमालिनी, काली, कौमारी, वाराही, माहेश्वरी, घोर वीरासनी, योग-योगेश्वरी, सोमनी, रतन ब्राह्मणी, इन्द्रासनी, अणिमा, लघिमा, प्रज्ञप्ति, कात्यायनी, डायनी, उच्चाटनी, स्तम्भिनी, मोहिनी वैरिविध्वंसिनी, वारुणी, पावनी,