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________________ 108 अपभ्रंश भारती 19 विभाग, सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर) के अथक प्रयासों से इस भाषा के व्यवस्थित अध्ययन-अध्यापन की अभूतपूर्व पहल की गई। उनके प्रयासों और परामर्श से दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी द्वारा स्थापित व संचालित 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' द्वारा वर्ष 1989 से अपभ्रंश-प्राकृत भाषाओं का विधिवत् अध्यापन प्रारंभ किया गया जो आज भी पत्राचार के माध्यम से अनवरत संचालित है। आज ये पाठ्यक्रम राजस्थान विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त हैं। मेरा सौभाग्य था कि मुझे डॉ. कमलचन्दजी सोगाणी से इस विलुप्तपुरानी 'अपभ्रंश भाषा' को सीखने का अवसर मिला। उनसे मिली शिक्षा के आधार पर ही अपभ्रंश की इस रचना - ‘सुप्पय दोहा' का अर्थ कर सकी। इसके लिए मैं श्रद्धेय गुरुवर डॉ. सोगाणी की चिरऋणि हूँ, उनके प्रति मैं अपनी कृतज्ञता अभिव्यक्त करती हूँ। इस काव्यकृति की पाण्डुलिपि उपलब्ध कराने के लिए जैनविद्या संस्थान के पाण्डुलिपि विभाग के तत्कालीन प्रभारी (स्व.) पण्डित भंवरलालजी पोल्याका, जैनविद्या संस्थान समिति के पूर्व संयोजक (स्व.) डॉ. गोपीचन्दजी पाटनी, श्री ज्ञानचन्द्र खिन्दूका की आभारी हूँ। __ अपभ्रंश साहित्य अकादमी की शोध-पत्रिका 'अपभ्रंश भारती' में इसके प्रकाशन के लिए मैं पत्रिका के सम्पादक एवं सम्पादक मण्डल तथा जैनविद्या संस्थान समिति के वर्तमान संयोजक डॉ. कमलचन्दजी सोगाणी के प्रति आभार अभिव्यक्त करती हूँ। ___ पाठक इस छोटी-सी काव्य-रचना को पढ़कर, इसका चिन्तन-मनन कर इसके हार्द को समझें; दान-परोपकार आदि मूल्यों को जीवन में उतारें; जीवन की क्षणभंगुरता, मृत्यु की अनिवार्यता व आकस्मिकता को हृदयंगम करते हुए आत्मा के एकत्व-अन्यत्व स्वरूप को आत्मसात कर अपने दुर्लभ मनुष्य-जन्म को सार्थक बनाने का प्रयास करें ह्न यही है इस कृति के प्रकाशन का उद्देश्य।
SR No.521862
Book TitleApbhramsa Bharti 2007 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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