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________________ अपभ्रंश भारती 19 रहता है (12); विचार कर, आसक्त मनुष्य को मोह बहुत नचाता है (74) (75)। तू जिस प्रिय के मरने पर पछाड़ खाकर रोता है वह तो श्मशान में अकेला ही जलता है, यह कैसा प्रेम है तेरा ( 69 ) ! अरे, इन बंधु-बांधवों से तो वे लकड़ियाँ ही भली हैं जो साथ में जल जाती हैं ( 9 ) । सगे-सम्बन्धी तो केवल आँसू टपकाते हैं (10) । बता, तेरे लिए कुटुम्ब कितने दिन रोता है ( 32 ) ? 106 और तू इतना विलाप करके रो रहा है, तो क्या इससे मरा हुआ प्रिय वा आता है (13) (64 B ) ! जाते हुए को कोई नहीं रोक सकता (71)। जब मृत्यु आती है तब कोई रक्षक नहीं होता / कोई रक्षा नहीं करता ( 26 ) । आत्मा का एकत्व समझाते हुए कवि ने कहा है तू अकेला है, तेरा यहाँ कोई नहीं है, देख, जब मानव मरता है तो वह श्मशान में अकेला ही जलता है, संगी-साथी, भाई-बंधु, परिवारजन कोई भी साथ नहीं जलता ( 9 ) (70)। घर-परिवार की चिन्ता करता हुआ क्यों छटपटाता है ( 12 ) ? जिस परिवार के लिए अनीतिपूर्ण कार्य भी करता है वह परिवार भी तेरा साथ नहीं देता । तेरा परिवार के प्रति मोह - आसक्ति ही तुझे संसार में नचाता है ( 74 ) (75)। - यह मनुष्य जन्म पाना दुर्लभ है, यह समझाते हुए कवि कहते हैं देख, उत्तम कुल मनुष्य जन्म पाना बहुत दुर्लभ है ( 39 ) । ध्यान दे, ये दिन निष्फल न चले जायें (22) । मानव देह का / मानव जन्म का महत्त्व समझ (38) (39)। मनुष्य जन्म को सार्थक करने के लिए अरिहंत का ध्यान कर ( 8 ), मन पर संयम रख (42), सदाचार को अपना ( 38 ), धर्म कर ( 39 ), तप कर (49) (41), जो संयम रखते हैं, क्रोध नहीं करते वे यति होते हैं ( 43 ) । ज्ञान - ध्यान कर ( 58 ), जीवों पर दया कर ( 37 ), विपत्तिग्रस्त लोगों की रक्षा कर ( 37 ), परोपकार कर (29), जो परोपकार करता है भाग्य उनका साथ देता है ( 38 ) (63) । परोपकार कर, जिससे संसार - बन्धन से छुटकारा मिलता है (83) ( 66 ) । सज्जनों की प्रशंसा कर, उनका जैसा आचरण कर ( 32 ) । व्यर्थ क्यों रोता है, छटपटाता है ( 58 ) ? सत्कार्य कर (38) (39), देख मरना निश्चित है अतः सुकृत करले (37) (42)। कवि ने दान को बहुत महत्त्व दिया है - देख, यहाँ कुछ भी स्थिर नहीं है, न ऊँचा कुल न ऊँचे लोग, इसलिए दान दे ( 40 ) । दान दिया हुआ धन ही स्थिर होता है (52)। जो दान नहीं देता वह मरे हुए के समान होता है ( 36 ), वह अनाथ बच्चे के समान क्षीण होता हुआ शीघ्र ही मर जाता है ( 18 ) । यदि धन का दान नहीं करता तो फिर धन का संचय क्यों करता है ( 34 ) ? दान देते हुए दुःखी मत हो ( 16 ) ! जो
SR No.521862
Book TitleApbhramsa Bharti 2007 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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