SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपभ्रंश भारती 17-18 73-74 सेठ गया और पुत्र के आगमण पर बधाई देता है। ऐसी बात सुनकर मन में आनन्दित होकर शीघ्र वन में गया। क्षण-क्षण में आकर कौन भेद से क्षण भर में पैरों में पड़ता है। क्षणभर में जिनेन्द्र के पास जाकर प्रशंसा करता है। क्षण में गाता है, क्षण में नाचता है।।73-74।। 75-76 उत्साह करता है। मन्दिर में आकर सज्जनों के समूह से परिमित बहुत दिनों में यह संयोग हुआ पापरूपी शत्रुता टूटे। मुनियों के द्वारा ऐसा जानकर दृढ़तापूर्वक व्रत को धारण करो। दाण पूजा के अच्छे प्रयास से जिनेन्द्र स्वामी की सराहना करो।।75-76।। 77-78 ऐसे व्रत का उपदेश नगर के लोगों ने मन में धारण किया। अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार रविव्रत धारण करो। उस व्रत का पालन करने से स्वर्ग और मोक्ष सेठ को शीघ्र दिया गया। संसारी उन पाँचों के मध्य में सिवपुर में आकर जीता है।।77-78।। 79-80 जो भव्य जीव दृढ़तापूर्वक रविव्रत को पालेंगे वह सिव मोक्ष को पायेंगे। उसमें भय मत देख। बाँझ पुत्र के समर्पित करेगी। अनेक प्रकार के कष्ट धारण कर बधिर के कान, निर्धनों को धन, अन्धों के लिए अनुपम दोनों नेत्र देगा।।79-80।। 81-82 इस लोक में रविव्रत अपूर्व है संशय मत करो। निश्चय से फल जानों। भावना करके धारण करने वाले होओ। हे भविकजनों मेरे द्वारा अज्ञानता की गयी है। मैं अज्ञानी हूँ। छन्द नहीं जानता हूँ। मुझे दोष मत देना, मुझे बुद्धिहीण कहना।।81-82॥ 83-84 पार्श्व जिनेन्द्र के प्रसाद से दिवसेह यह कहता है। पण्डित, देवलोग, पार्श्व के भक्तों व्रत को धारण करो। जो यह पढ़ता है, कान देकर सुनता है वह यश, कीर्ति, प्रशंसा और परमगति को पाता है।।83-84।। इति श्री पार्श्वनाथ आदित्यवार कथा समाप्त ।
SR No.521861
Book TitleApbhramsa Bharti 2005 17 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy