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प्रकाशकीय
अपभ्रंश भाषा एवं साहित्य के रसिक अध्ययनार्थियों के सम्मुख 'अपभ्रंश भारती' पत्रिका का यह अंक प्रस्तुत करते हुए हर्ष है।
अपभ्रंश अपने काल की सामान्य लोकचेतना के प्रादुर्भाव और विकास की कहानी है। यह तत्कालीन जन-जीवन के लोक-व्यवहार की महत्त्वपूर्ण भाषा है। अपभ्रंश में लोक-जीवन का मार्मिक, रसयुक्त, उत्प्रेरक व विश्वसनीय चित्र है। इसमें लोक-गाथाएँ, श्रृंगार, वीर, नीति, वैराग्य आदि विविध प्रवृत्तियों की धाराएँ, समाज की धार्मिक, सामाजिक, साहित्यिक प्रतिक्रियाएँ अपने अधिक स्वाभाविक रूप में सुरक्षित हैं। इसमें तत्कालीन समाज के जीवन्त चित्रों की विविध झाँकियाँ हैं।
दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी की प्रबन्धकारिणी कमेटी द्वारा अपभ्रंश भाषा और उसके साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए जैनविद्या संस्थान के अन्तर्गत ईसवी सन् 1988 से 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' संचालित है। अकादमी द्वारा अपभ्रंश भाषा के अध्ययन के लिए 'अपभ्रंश सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम तथा अपभ्रंश डिप्लोमा पाठ्यक्रम' पत्राचार के माध्यम से संचालित हैं। इसके अध्ययन-अध्यापन के लिए अकादमी द्वारा पर्याप्त पाठ्य-पुस्तकें एवं सामग्री भी प्रकाशित की गई हैं। अपभ्रंश भाषा में मौलिक साहित्यिक अवदान के लिए 'स्वयंभू पुरस्कार' भी प्रदान किया जाता है।
- हम उन विद्वान् लेखकों के आभारी हैं जिनकी रचनाओं ने इस अंक को यह रूप प्रदान किया।
पत्रिका के सम्पादक, सहयोगी सम्पादक एवं सम्पादक मण्डल धन्यवादार्ह हैं। अंक के पृष्ठ-संयोजन के लिए आयुष ग्राफिक्स, जयपुर तथा मुद्रण के लिए जयपुर प्रिण्टर्स प्राइवेट लिमिटेड, जयपुर भी धन्यवादाह हैं।
नरेशकुमार सेठी
नरेन्द्र पाटनी __ मंत्री
अध्यक्ष
प्रबन्धकारिणी कमेटी, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी