SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 48 अपभ्रंश भारती 17-18 शक्ति का भी पता देती है कि वह गगन-विहारी वायवीय कल्पना और स्वप्निल सौन्दर्यात्मक अभिव्यक्ति का गायक नहीं है। पउमचरिउ कवि की कीर्ति का आधार है। पउमचरिउ में गौतम गणधर जब कथा आरम्भ करते है तो कल्पना का धार्मिक समायोजन और फिर ऋषभजिन के जन्म की कथा आरम्भ होती है। जो बात यहाँ मुझे कहनी है वह यह कि यहाँ भी लोक अपनी कल्पना में उपस्थित है चाहे वह रानी का स्वप्न हो या राजा की भविष्यवाणी कि- 'तुम्हारे तीनों लोकों में श्रेष्ठ पुत्र होगा'। पुन: जिस तरह से, जिस कौतूहल और कथा-सृष्टि के साथ स्वयंभूदेव ने काव्य-कथा का संयोजन किया है वह खुद में लोक की नैसर्गिक कल्पनाशक्ति की जयगाथा कही जा सकती है- जिनभट्टारक जिस तरह से सर्वोच्च शक्ति बने देवताओं से पूजित हो रहे हैं और आश्चर्य की बात यह कि खेलखेल में बीस लाख वर्ष पूर्व बीत जाते हैं- तब प्रजाजन के विलाप पर (क्योंकि देवलोक में कल्पवृक्ष वगैरह नष्ट हो गए हैं) असि, मसि, कृषि, वाणिज्य की शिक्षा भी जगश्रेष्ठ भट्टारक ऋषभ देते हैंअमर-कुमार हिं सहुँ कीलन्तहों। पुव्वहुँ बीस लक्ख लङ्घन्तहौँ। एक्क-दिवसें गय पय कूवारें। देव-देव मुअ भुक्खा -मारें। अण्णहुँ असि मसि किसि वाणिज्जउ। अण्णहुँ विविह-पयारउ विज्जर।।2.8॥ उदाहरणों के जरिए अपनी बात पुष्ट करने में तो स्वयंभू का कोई प्रतिद्वन्द्वी नहीं दिखता। इस मामले में वह अपभ्रंश के आचार्य कवि हैं। अब समय बीतने पर ऋषभजिन के शरीर की कान्ति उसी तरह बढ़ने लगी। जैसे व्याख्या करने पर व्याकरण का ग्रन्थ विकसित होने लगता है कालें गलन्तएँ णाहु णिय-देई-रिद्धि परियड्डइ। विविरिज्जन्तु कईहिँ वायरणु गन्थु जिह वड्वइ ।।2.7.9॥ यह कभी-कभी तो अति की प्रवृत्ति तक कवि में देखने को मिलती है। उदाहरण के लिए चक्रवर्ती भरत की जययात्रा अयोध्या की सीमा-रेखा पर रुक जाती है तो वह किस तरह पइसरइ ण पट्टणे चक्क -रयणु । जिह अवुहब्भन्तर सुकइ-वयणु ।। जिह वम्भयारि-मुहें काम सत्थु । जिह गोट्ठङ्गणे मणिरयण वत्थु ।।
SR No.521861
Book TitleApbhramsa Bharti 2005 17 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy