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________________ अपभ्रंश भारती 17-18 भी कर्मों से वेष्टित कर दिया जाता है और अधर्म के कारण वह दुःख के सागर में पड़ जाता है। अकषाय (मन्द कषायवाले) का आस्रव शुभ बन्ध का कारण होता है, वह खोटी गति और मनुष्य गति में भी अधम मनुष्य नहीं होने देता। शुभ कर्म के द्वारा शुभ परमाणुओं का संचयकर जीव तीर्थंकर गोत्र को भी प्राप्त कर लेता है। सकषाय जीव का भाव मिथ्या दर्शन के कारण कुटिल हो जाता है और शुभ मन-वचन-कायवाले अल्प कषाय- वाले जीव का भाव पुण्य-बन्ध का कारण होता है। संवर भावना सहइ परीसहु परमदियंबरु आसवर्थभणु जायइ संवरु। इंदियवित्तिछिडु दिनु ढक्कइ नवउ कम्मु पइसरेंवि न सक्कइ। नावारूढु जेम जलि जंतउ सुसिरसएहिँ सलिलु पइसंतउ। जो देविणु पडिबंधणु वारइ तीरुत्तारु तासु को वारइ। अह मोहिउ मइंधु जइ अच्छइ कवण भंति वुडेवि खउ गच्छइ। इय कज्जें अकसाउ कसायों दिज्जइ विरइ-निबंधणु रायहों। कोहहों खंति नाणु अण्णाणहो लोहहों तोसु अमाणु वि माणहों। अणसणु रसमिद्धिहि निद्धाडणु पायच्छित्तु पमायों साडणु। घत्ता- इय जो कुम्मायारसमु संवरियप्पु न आसउ गोवइ। लाइवि दावानलु गहणे मारुयसम्मुहें होइवि सोवइ।।11.8॥ फिर वे दिगम्बर मुनि घोर उपसर्ग को सहन करते हुए आस्रव को रोकनेवाली संवर भावना का चिन्तन करते हैं- इन्द्रिय-वृत्तिरूपी छिद्रों को दृढ़ता से ढक देने पर नया कर्म प्रवेश नहीं कर सकता। जिस प्रकार नाव में बैठा हुआ जो व्यक्ति नाव में सैकड़ों छिद्रों से प्रवेश करते हुए जल को छिद्रों को बन्द करके रोक देता है उसे किनारे तक पहुँचने से कौन रोक सकता है! किन्तु यदि कोई मति का अन्धा व्यक्ति मूढ़ होकर बैठा रहे, छिद्रों को बन्द न करे तो इसमें क्या भ्रान्ति है कि वह डूबकर विनाश को प्राप्त होगा! अतः कषाय के लिए अकषाय, राग के लिए विरति, क्रोध के लिए क्षमा, अज्ञान के लिए ज्ञान, लोभ के लिए सन्तोष, मान के लिए मार्दव का निबन्धन (रोक) लगाना चाहिये। अनशन रस-लोलुपता को दूर करनेवाला है तथा प्रायश्चित प्रमाद को नष्ट करनेवाला है, इस प्रकार जो कूर्माकार के समान अपने को संवृत करके आस्रवों से अपनी रक्षा नहीं करता, वह मानो वन में आग लगाकर पवन के सम्मुख मुख करके सोता है।
SR No.521861
Book TitleApbhramsa Bharti 2005 17 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size6 MB
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