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________________ 14 अपभ्रंश भारती 17-18 गिरिविज्झु दुग्गमसिहरु एम पइसइ निवइ खंधारु गिरिविज्झु दुग्गमसिहरु सरलवंसपव्वहिँ अहिट्ठिउ। पुव्वावरोवहि धरवि धरपमाणदंडु व परिट्ठिउ॥ गिरिनिज्झरकंदरविसम तरुवरनियरवरिट्ठ। रवबहिरियवणयरभमिर विज्झमहाडइ दिट्ठ॥1॥ कहिँ मि- अहिमारखर-खइर-धवधम्मणा कंटिवोरीघणा। वंसिज्मंसी-तिरिंगिच्छि-अंजणवणा रोहिणी-रावणा। . विल्ल-चिरहिल्ल-अंकोल्लतरु-धायई मल्लि-भल्लायई। घोंटि-टिंबरु-निघण-फणसमहरुक्खया हिंगुणी-मोक्खया। सिरिसु सेवन्नि-सेहालिया-सिंसमी सज्ज-गुंजा-समी। कडहु-किरिमाल-करहाड-कणियारिया कुडय-गणियारिया। कउह-वड-ढउह-सकरीर-करवंदिया मार-महु-सिंदिया। निंब-कोसंब-जम्बुइणि-निंबुंबरा सग्गलग्गं वरा। महाकवि वीर, जंबूसामिचरिउ 5.8.1-12 - इस प्रकार नृपति का स्कन्धावार सीधे बाँसों की मेखलाओं से भरे हुए एवं दुर्गम शिखरोंवाले विंध्यपर्वत में प्रविष्ट हुआ, जो पूर्व और अपर (पश्चिम) उदधि को धारण करके धराके प्रमाणदण्ड के समान स्थित था। इसके उपरान्त पहाड़ी झरनों, विषम कंद-राओं और सुन्दर वृक्षों के उत्तम कुंजों तथा अपने शोर से बहरा कर देनेवाले वनचरों के भ्रमण विंध्य महाअटवी दिखाई दी। कहीं अहिमार, कठोर खदिर (खैर), धव, धम्मण और घने कंटीली बेरी के वृक्ष थे। कहीं बाँस, झंसी (झाड़), तिरिंगिच्छ और अंजण तथा रोहिणी (गुल्म विशेष) व रावण (औषधि विशेष) आदि के बड़े-बड़े वन थे। कहीं बेल, चिरिहिल्ल, अंकोल्ल, धातकी और मल्लि तथा भल्लातकी के वृक्ष थे। कहीं पर मुख्यतया घोटी, टिंबर, निधन, फणस व हिंगुणी के बड़े-बड़े वृक्ष थे! कहीं सिरीष, सेवणि, शेफालिका, सिंसम (शीशम-शिंशपा), सर्ज, गुंजा और शमी (छोंकार) के वृक्ष थे। कहीं कटभू (कटहल), किरिमाल, शिफाकंद (मैनफल) और कर्णिकार (कनैर) व कुटज और गणिकार के तरु थे। कहीं ककुभ (चंपा) वट, ढउह (ढौह) करील, करवंदी (करौंदा) मार व महुआ और सिंदी के वृक्ष थे। कहीं निंब, कोशाम्र, जंबूकिनी (बेतस-बेंत), नींबू व उंबर (उदुंबर) के सुन्दर वृक्ष मानो स्वर्ग को छू रहे थे। अनुवादक - डॉ. विमलप्रकाश जैन
SR No.521861
Book TitleApbhramsa Bharti 2005 17 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size6 MB
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