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________________ अपभ्रंश भारती 17-18 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. लक्ष्मी, सरस्वती, काली, तारा, दुर्गा । सावित्री, शैव्या, सीता, दमयन्ती, देवहुति । सती, पार्वती, अनुसूया, शण्डिली, अरुन्धती । रमा, राधिका, सीता, गौरी, ब्रह्माणी । अदिति, कौशल्या, देवकी, रोहिणी, यशोदा । मदालसा, वैशालिनी, सुकन्या, चिन्ता, बेहुला। संयोगिता, दुर्गावती, कर्मदेवी, कैकेयी, लक्ष्मीबाई । रामचरितमानस, लंकाकाण्ड, 61.11, 12 ट्ठामुह कम-कमलु णियच्छेवि, अवराइय- सुमित्ति आउच्छेवि । णिग्गय सीयाएवि सिय हरहन्त णित-भवणहों । रामहो दुक्खुप्पत्ति असरि णाइँ अइवयणहों ॥ 13 पउमचरिउ 23.6.8-9 वही, 83.8.7-9, 83.9. वही, वही, 38.14 धीरु जे धीरउ होइ णियाणें वि । ढुक्कन्तऐ जीविय - अवसार्णे वि ॥ तियहे होइ जं सीयहे साहसु । तं तेहउ पुरिसहों वि ण ढड्ढसु ॥ 49.17.2-3 पउमचरिउ 83.8.7-9; 83.9 अहो देवों महु तणउ सइत्तणु । जोएज्जहों रहुवइ - दुट्ठत्तणु । अह वइसाणर तुहु मि डहेज्जइ । जइ विरुआरी तो म खमेज्जहि ॥ 83.4.7-8 हिन्दी विभाग कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल (उत्तरांचल)
SR No.521861
Book TitleApbhramsa Bharti 2005 17 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size6 MB
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