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________________ अपभ्रंश भारती 17-18 जइ वि कुलुग्गयाउ णिरवज्जउ। महिलउ होन्ति सुट्ठ णिल्लज्जउ ।। दर-दाविय-कडक्ख-विक्खेवउ। कुढिल-मइउ वड्ढिय-अवलेवउ॥ वाहिर-धिट्ठउ गुण-परिहीणउ। किह सय-खण्ड ण जन्ति णिहीणउ॥ णउ गणन्ति णिय-कुलु मइलन्तउ। तिहुअणे अयस-पडहु वज्जन्तउ॥ अंगं समोड्डेवि धिद्धिक्कारहों। वयणु णिएन्ति केम भत्तारहों।83.7.2-7 - अर्थात् स्त्री अत्यधिक कुलीन और अनिन्द्य होने पर भी निर्लज्ज, कुटिल, अहंकारी, ढीठ, गुणों से रहित और कुल-कलंकिनी होती है। अपयश की पात्र होने पर भी पति को मुँह दिखाने में झिझकती नहीं है। यहाँ पर राम का दोहरा चरित्र दिखाई देता है। एक ओर वे विभीषण के सामने स्पष्टतः स्वीकार करते हैं कि - सीता निर्दोष है। वह समुद्र के समान गम्भीर है। मन्दराचल के समान धीर है। मेरे समस्त सुखों का काण है। मैं उसके सतीत्व को जानता हूँ... ... ... ... जाणमि सीयहें तणउ इत्तणु। जाणमि जिह हरि-वंसुप्पण्णी। जाणमि जिह वय गुण-संपण्णी। जाणमि जिह जिण-सासणे भत्ती। जसणमि जिह महु सोक्खुप्पत्ती॥ जा अणु-गुण-सिक्खा -वय-धारी। जा सम्मत्त-रयण-मणि-सारी॥ जाणमि जिह सायर-गम्भीरी। जाणमि जिह सुर-महिहर-धीरी ॥81.3।। दूसरी ओर वे ही राम सीता के सामने आनेपर उससे व्यंग्यभरे कटु शब्द कहने से नहीं चूकते। न केवल सीता पर बल्कि समस्त नारी जाति पर वे व्यंग्य करते हैं। राम के व्यंग्यवाण सीता को मर्माहत कर देते हैं। उसका आहत स्वाभिमान इस अपमान को सहने में असमर्थ हो जाता है और वह प्रचण्ड भाव से गर्वपूर्वक कहती है सीय न भीय सइत्तण-गव्वे । वले वि पवोल्लिय मच्छर गव्वे । 83.8.7 सीता राम के बहाने सारी पुरुष-जाति की भर्त्सना करते हुए अपना रोष प्रकट करती हुई कहती है- स्त्रियाँ मृत्युपर्यन्त पुरुष का परित्याग नहीं करतीं, चाहे वे गुणवान हो या कमजोर। इस पर भी पुरुष उसे ठीक उसी प्रकार कष्ट पहुँचाता है जैसे पवित्र और कुलीन नर्मदा नदी रेत, लकड़ी और पानी बहाती हुई समुद्र के पास जाती है और समुद्र उसे खारा पानी देता है। लोक इस तथ्य का प्रमाण है कि चन्द्रमा कलंकयुक्त है पर उसकी चाँदनी निर्मल होती है। मेघ काले हैं पर उनमें समाहित बिजली उज्ज्वल है। पत्थर अपूज्य होता है पर उससे बनी प्रतिमा पूज्य होती है। कीचड़ लगने पर लोग पैर
SR No.521861
Book TitleApbhramsa Bharti 2005 17 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages106
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size6 MB
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