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अपभ्रंश भारती 15-16
(1.4)
हरिसेणु कुमारु कालु गमइ सहु वयस जुवाणहि सहुं रमइ। कीलइ वर मुरविहि पेक्खणेहि गंधव्व गेयउ दिक्खणेहि। आरंभ परक्कम णाडएहि उच्छित्त चलण संधाडएहि। मद्दल मउ दच्छण्णाणिएहि दावइ पउग पडिहाणिएहि।
5.
आलावणि तिसर वीण मुणइ तं मिल्लिवि कणय दंड गुणइ। असि मुसल मुसुंढि सुत्ति वरइ नहि भामिवि झिंदुल्लउ धरइ। जाणइ परहत्थ दच्छ गमणु णह लंधणु विज्ज रवेत्त करणु। गारुडू निमित्तु सामुहुँ तहा सुय राय सत्थ सम्बन्ध कहा। दप्पु धुरवर तुरंग दमइ कीलीकिलु जलु जंति रमइ।
10.
घत्ता - वर भवणिहि मणि रयणिहि कुंडल मउड सोहसिय सारु।
नर विंदहि मत्त गयंदहिं रमइ भोय हरिसेणु कुमारु॥5॥
(1.5)
इत्थंतरि पुन्न पवहियह पडिवण्ण दियह अट्ठाहियहु। तो वप्पाएव पइट्ठमणे आएसु देइ निय भिच्चजणे। संजुत्तहु जिणवररहु तुरिउ मणिकंचण रयणहिं विप्फुरिउ। सोवण्णदंड धयधुयधवलु वर किंकिणि घंटारवमुहलु। जिण पडिम सुसोहिउ विमलपहु जें णयरहो मज्झे भमइ रहु।
5.
घत्ता - पयसियवहु चंदणरसिण लहु वर भवणिहि सोह करेहु।
पइसंतहो जिणवरणाहहो अग्गइ कंचण कलसग्गेहु॥5॥