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अपभ्रंश भारती 15-16
(1.2)
रणे धणउ जिणिवि दहवयण पहु पुप्फवइ विमाणि आरूढु लहु। कंचण मणि रयण फुरंतियहे लंकहि सवडम्मुहु जंतु णहे । पेक्खइ गिरिसिहरि समुज्जलई धवलज्ज कुंभ ससि णिम्मलई। तं णियवि पवुल्लिउ दहवयणु विभउ जणंतु वियसिय वयणु।
5.
इउ काइ ताय अच्चुभुयई गिरिसिहरिहि कुसुमई संभुयइं। तो भणइ पियामहु तुट्ठमणु इउ णवहि वच्छ तुहु पणयतणु। णवि आयइ कुसुमइ संभुयइ जिणभवणइं धवलुद्धअ' द्धयइ।
घत्ता - गिरि विवरहि पव्वसिहरिहिं जगि सक्रियत्थे हरिसेणेण।
सुहदेसिहिं रम्मपएसिहिं किय महि भवण णिरंतरेण ॥2॥
(1.3)
अलिउल घण कज्जलु किसणतणु पुणु भणइ दसासणु तुट्ठमणु। को पुणु एहउ सकियत्थ णरु वित्थरिउ जासु जगे जसु पवरु। किय भवण निरंतरु जेण महि तहु तणिय कित्ति महु ताय कहि। तो भणइ सुमालि रहसभरिउ सुणि दहमुह हरिसेणहो चरिउ। पणवेवि सिद्ध पुणु कहमि कह कंपिल्ल नयरि वहुजण वसह। कंचण मणि रयण विसालसिरी रिद्धिए सविसेसइ धणयपुरी। णिउ नामि विसद्ध परिवसइ रिउ सिन्नु पयावहो जसु ल्हसइ। अहिमाणि दाणि विक्कमिअ जउ परदार परम्मुह सच्चरउ।
तहो वप्प महाइवि गुणपवरा अंतेउर उत्तिम रूवधरा। तहे तणइउ अरिजय सिरिणिलउ उप्पण्णु पुत्तु जग कुलतिलउ।.
10.
घत्ताह्न में जम्मेन्तेण पवहतेण वहरि घरह उप्पायउ तासु।
सुहि वियसिय वंधव हरिसिय तें हरिसेणु नाउ किउ तासु॥3॥