SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपभ्रंश भारती 15-16 अपभ्रंश है। सौन्दर्य के विविध उपादानों का समुचित प्रयोग करके उसके कवि ने उसे भाव और परिस्थिति के अनुरूप बनाकर अपने प्रबन्ध को सामान्य सहृदय के लिए भी सहज तथा सरस बना दिया है। मुहावरों और सभी प्रकारेण सार्थक शब्दों के प्रयोग से उसे जीवन्त बनाने का सफल प्रयास किया है। शब्द की लक्षणा-व्यंजना शक्तियों के द्वारा उसमें अर्थ-चमत्कार भरा है तो सादृश्यमूलक अलंकारों के नूतन तथा मौलिक प्रयोगों से उसके सौष्ठव को उन्नत कर दिया है। विविध भावों, अनुभावों, स्थितियों एवं दृश्यों के चित्रण में उसकी काव्य-भाषा सर्वत्र सशक्त एवं समृद्ध बनी है। सचमुच मुनि कनकामर वीतरागी महापुरुष ही नहीं, काव्य और काव्य-भाषा के मर्मज्ञ विद्वान् और मनीषी भी हैं। करकण्डचरिउ, कवि कनकामर, सम्पादक- डॉ. हीरालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, दिल्ली। 49-बी, आलोक नगर आगरा - 282 010
SR No.521860
Book TitleApbhramsa Bharti 2003 15 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages112
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy