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अपभ्रंश भारती 15-16
काव्य में प्रकृति का चित्रण केवल काव्य की अनिवार्यता ही नहीं अपितु प्रकृतिचित्रण के सामने कवि उससे प्रेरण, उल्लास और आनन्द प्राप्त कर स्वयं का तादात्म्य स्थापित करता है और मानव हृदय की विविध भावात्मक अनुभूतियों को प्रकृति के सहारे उद्दीप्त करता है। धनपाल ने स्वाभाविक रीति से प्रकृति के आलम्बन और उद्दीपन रूप को प्रस्तुत किया है। प्रिया से बिछुड़ जाने पर भविष्यदत्त को असहनीय दुःख की अनुभूति होती है। फलस्वरूप वह मूर्छित हो जाता है। ऐसे अवसर पर कवि अपनी कल्पना के सहारे वन की बयार को थपकी देते हुए देखता है
दूसह पियवि ओय संतत्तउ मुच्छइ पत्तउ।
सीयल मारूएण वणि वाइउ तणु अप्पाइउ। 7.8॥ उपर्युक्त पंक्ति में प्रकृति के उद्दीपन रूप का चित्रण हुआ है। धनपाल के काव्य में आलम्बन के रूप में भी प्रकृति का चित्रण विद्यमान है। संध्या का एक चित्र देखिये
एहइ पडिवण्णि करालि कालि गहभूयजक्खरक्खसवभालि। वणि विसम बिएसि विचिन्तु पन्तु तह वि हुअकंपु कमल सिरि पुत्त। 4.4॥
__ अपभ्रंश जैन कवियों की विशेषता रही है- विषय अनुरूप भाषा निर्मिति की। और इसके लिए आवश्यकता होती है उपयुक्त ध्वनि और शब्दों के चयन की। धनपाल के भविसयत्तकहा में गतिपुर और पुराणपुर के राजाओं का वर्णन मेरे इस कथन का साक्षी है।
धनपाल की भाषा अवधी बोली है, यद्यपि भविसयत्तकहा की भाषा शास्त्रीय भाषा नहीं पर- उस पर साहित्यिक प्रभाव है। धनपाल की भाषा में कसावट भी है और संस्कृत के शब्दों के प्रति झुकाव भी, इसलिये यह साहित्यिक भाषा सिद्ध होती है। कतिपय विद्वानों ने भविसयत्तकहा की भाषा को ग्राम्य कहा है। इसका कारण है- 'ह' का प्रयोग। इस सन्दर्भ में याकोबी कहते हैं- 'हो' के बदले 'हुँ' या 'ही' का प्रयोग पश्चिमी अपभ्रंश की विशेषता है। यह सच है कि भाषागत प्रवृत्तियों के विभिन्न शब्द रूप भविसयत्तकहा में दिखाई देते हैं पर काव्य रचना का झुकाव परिनिष्ठत अपभ्रंश की ओर ही है जिसमें भाषागत परिवर्तन के रूप स्पष्ट हो चुके थे।
वस्तुतः काव्य-भाषा सामान्य भाषा से अलग होती है। काव्य भाषा का लक्ष्य अन्तस और संवेदना की सघनतम प्रस्तुति तो होती ही है साथ ही उसे ऐसे रूप में प्रस्तुत करने का भी लक्ष्य होता है ताकि पाठक को कथा यथार्थ प्रतीत हो फलस्वरूप रचनाकार को चित्रात्मक भाषा का सहारा लेना पड़ता है। धनपाल इसमें पीछे नहीं।
धनपाल ने जिन वस्तुओं एवं नगरों का वर्णन किया है उसमें उनका हृदय साथ-साथ चलता प्रतीत होता है। फलस्वरूप ऐसे वर्णन चित्रों से भरपूर हैं। गजपुर नगर का एक वर्णन द्रष्टव्य है