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________________ अपभ्रंश भारती 15-16 जाइँ विरंतराइँ चिरु पाणिय-हारिहु तित्थईं। .. ताइँ वि विहिवसेण हूअ णीसद्द सु-दुत्थइँ। 3.7॥ नारी-सौन्दर्य के वर्णन में शृङ्गार, भविष्यदत्त की आपत्तियों-विपत्तियोंवाले स्थल पर करुण रस, युद्ध-वर्णन में वीर तथा अन्त में निवृत्ति तथा मोक्षवाले प्रसंगों में शान्त रस द्रष्टव्य है। करुण रस की प्रस्तुति में धनपाल वाल्मीकि के निकट दिखाई देते हैं। ऐसे अनेक स्थल इस कथा-काव्य में जगह-जगह हैं। चरित्र-चित्रण एवं वस्तु-वर्णन में कवि सफल सिद्ध हुआ है। नगर-वर्णन में वह नगर को स्वर्ण-खण्ड बताता है। प्रकृति के आलम्बनवत चित्रण के समय वह उसकी मार्मिक छवि अंकित करता है। नारी सौन्दर्य का नख-शिख चित्रण करते हुए वह उसे युवकों के हृदय को बेधनेवाला कामदेव का भाला बताता है- ‘णं वम्मह भल्लि विधणसील जुणाण जणि'। कवि के युद्ध-वर्णन में वीर रस का ओजपूर्ण संचार भी है। चरित्रांकन में कवि ने पात्रों को वर्ग-चरित्र (टाइप) में विभक्त कर कुछ नवीनता लाने का प्रयास किया है। सभी प्रकार के साधु-असाधु पात्रों में अच्छाइयाँ तथा बुराइयाँ दोनों विद्यमान है। सरूपा कुटिल होने पर भी कोमल भावनाओं से शून्य नहीं है। वह अपने न करने योग्य कर्मों पर पश्चात्ताप करती है। कमलश्री शुद्ध हृदय की महिला है। उसका चरित्र उत्तम है पर उसे भी सौतियाडाह है। बन्धुदत्त कुटिल तथा भविष्यदत्त उदात्त पात्रों के रूप में चित्रित हैं। अलौकिक शक्तियों की सहायता केवल साधु पात्र ही प्राप्त कर पाते हैं। कवि ने यहाँ पर रचना को आदर्श की ओर मोड़ना चाहा है। छन्दों में मात्रिक तथा वर्णिक दोनों का प्रयोग है, यह कडवकबद्ध रचना है जिसके अन्त में घत्ता दिया गया है। मुख्य छन्दों में संखनारी भुजंगप्रयात, लक्ष्मीधर, चामर, पज्झटिका, अडिल्ला, दुवई, मरहट्ठा, प्लवंगम, कलहंस और गाथा प्रमुख हैं। - कथा में प्रस्तुत अलंकारों में उपमा, उत्प्रेक्षा, श्लेष, स्वभावोक्ति विरोधाभास आदि का विशेष प्रयोग हुआ है। इसकी भाषा साहित्यिक अपभ्रंश है। इस भाषा में स्वयंभू और पुष्पदन्त की अलंकृत भाषा का-सा प्रवाह है गयं णिफ्फलं ताम सव्वं वणिज्ज। हुवं अम्ह गोतम्मि जज्जावाणिज्ज। ण जता ण वित्तं ण गितं ण गेह। ण धम्मं ण कम्म, ण जायं, ण देहं । ण पुत्त कलत्तं, ण इटुं ण दिटुं। गयं गयउरे, दूर-देसे पइटें 13.26॥
SR No.521860
Book TitleApbhramsa Bharti 2003 15 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages112
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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