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अपभ्रंश भारती 15-16
राम के व्यक्तित्व को अत्यधिक उन्नत करने के लिए कुछ आसक्तिजन्य भाव भी दर्शाये हैं- अग्नि-परीक्षा के बाद सीता का राम के साथ आने में आनाकानी करने पर उनका मूर्च्छित होना, सीता के साध्वी बनने पर राम द्वारा मुनि पर झपटना, इत्यादि। फिर शीघ्र ही राम को ज्ञान हो जाता है और वे वैराग्य की ओर अग्रसर हो जाते हैं। चन्द्रमा कलंक से युक्त होने पर भी अत्यधिक सुन्दर है। उसी प्रकार राम का व्यक्तित्व भी गुणों का अथाह समुद्र है भले ही उसमें कुछ मानवीय कमजोरियाँ दिखायी हों।
रविषेणाचार्य, पद्मपुराण भाग-1, प्रस्तावना डॉ. जगदीशचन्द्र जैन, प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृष्ठ-534 महाकवि स्वयंभू, डॉ. संकटाप्रसाद उपाध्याय पुत्तहो पुत्तत्तणु एत्तिउं जे। जं कुलुं ण चडाइ वसण पुजे। जं णिय-जणणहो आणा-विहेउ। जं करइ विवक्खहो पाण-छेउ। किं पुत्ते पुणु पयपूरणेण गुण-हीणे हियय-विसूरणेण॥ पउमचरिउ, महाकवि स्वयंभू, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, भाग-2, सन्धि 22.9.6-8. एउ वयणु भणेप्पिणु सुह-समिद्ध। सइँ हत्थे भरहहो पटु-वद्ध॥ प.च. 24.10.6 कहिँ तुहुँ कहिँ हउँ कहिँ पिययम कहिँ जणेरि कहिँ जणणु गउ। हय-विहि विच्छोउ करेप्पिणु कवण मणोरह पुण्ण तउ॥ प.च. 67.3.13 तहों आयइँ अवर वि करन्तहों णिय खन्धे हरि-मडउ वहन्तहों। भाइ-विओय-जाय-अइ-खामहों अद्ध वरिसु वोलीणउ रामहों। प.च. 88.10.12 हे कुञ्जर कामिणि-गइ-गमण। कहें कहि मि दिट्ठ जइ मिगणयण॥ प.च. 39.12.4 वणे विणट्ठ जाणई। न को वि वत्त जाणई। प.च. 40.12.9 पर-पुरिसु रमेवि दुम्महिलउ देन्ति पडुत्तर पइ-यणहो। किं रामु ण भुञ्जई जणय-सुअ वरिसु वसेंवि घरें रावणहों॥ प.च. 81.3.10 अण्णु णिएइ अणु अणु वोल्लावइ। चिन्तइ अण्णु अण्णु मणे भाव।। हियवइ णिवसइ विसु हालाहलु। अमिउ वयणे दिट्टिहें जमु केवलु। महिलहें तणउ चरिउ को जाणइ उभय-तडइँ जिह खणइ महा-णइ। वही 81.5.2-4
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