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________________ अपभ्रंश भारती 15-16 99 वृद्ध बोल्यो तव सुललित वाणि, आगम तणो भेद वखांणि। तिन्नि काल कवण कहो विप्र, षट् द्रव्य तणो भेद पवित्र ॥6॥ सप्त तत्व कवण कहो गुण, नव पदारथ तणो विचार। रत्नत्रय गुण कहो चंग, लेस्या कवण उत्तंग॥7॥ जीव समास कहो गुणवंत, ज्ञान तणा भेद जयवंत। एतला वानां कहो तम्हे आज, तो विदांस पंडित गुणराज॥8॥ तव गौतम करे विचार, आगम तणो भेद नावे सार। तव अहंकार करे अतिघोर, कोप चड्यो ब्राह्मण घनघोर ॥9॥ तुं आगलि कैसूं कहुं रे गंवार, हुं गौतम विद्या भंडार। थारा गुरु स्यूं करूं हवे वाद, विदांस तणा उतारूं नाद॥10॥ इम कही उठ्यो तीणेवार, बंधव सहित चाल्यो सविचार। पांच शत सिष्य गुणवंत, समोसरणि आव्यो पुन्यवंत ॥11॥ मान स्तंभ दीठौ उतंग, मान गल्यो मिथ्यात हुवौ भंग। समिकित उपनो परमानंद, बाध्यो घरम तणो तिहां कंद ।।12।। महावीर देव दीठा भवतार, सौभ्य मूरति स्वामी अवतार। तीर्थंकर स्वामीय जग गुरुदेव, सुरनर खेचर करे नित सेव ।।13।। गौतम हरष वदन हुवौ जांणि, स्तवन बोले तिहां मधुरीय वाणि। तम्ह दर्शन हुवो मझसार आज, काल लब्धि आवी मझकाजि॥14॥ हवें छूटो हुं भवसंसार, हवै मझ देउ स्वामीय संयम भार। इम कही तजीयो मोहजाल, दिगंबर हुवा गुणमाल ।।15।। तप जप संयम ध्यानं अभंग, चौथौ ज्ञान उपनो उत्तंग। मनःपर्यय तेह नाम जि सार, मन तणी बात जाणे गुणंधार॥16॥ सार रिद्धि उपनी वली सार, गणघर स्वामी हुवा भवतार। जिणवर वाणी अर्थ विशाल, अंग पूरव रचै गुणमाल॥17॥ प्रथम गणघर हुवा अतिचंग, इंद्रभूति नाम दीयौ उत्तंग। दूही बंधवै लीयौ संयम भार, गणधर हुवा स्वामीय भवतार ॥18॥
SR No.521860
Book TitleApbhramsa Bharti 2003 15 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages112
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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