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________________ काव्य प्रकाश में आ गये हैं, किन्तु दिगम्बर विद्वानों के रास-काव्य अभी भी बेठनों में बँधे सुधी समीक्षकों की प्रतीक्षा में हैं। " “उपलब्ध जैन रास - काव्यों में सबसे पहली जो रचना प्राप्त होती है वह है- उपदेश रसायन रास। इसके रचयिता श्री जिनदत्तसूरि हैं। ये श्री जिनवल्लभसूरि के शिष्य थे। उपदेश रसायन रास का रचनाकाल विक्रम सम्वत् 1171 है। इसमें कुल 80 छन्द हैं । " "अपभ्रंश भाषा में रचित 'हरिसेणचरिउ' के रचनाकार हैं- जीव कवि । हरिषेण पर आधारित इस चरिउकाव्य की चार सन्धियों में मानव जीवन के उदात्त मूल्यों की सफल अभिव्यक्ति हुई है। माँ-बेटे की लौकिक कथा पर आधारित यह काव्य लोकचेतना को विकसित करने तथा चिन्तनशील मानव की अन्तश्चतेना को सनातन सत्य की ओर अग्रसर करने में निःसन्देह एक अद्वितीय काव्य सिद्ध होता है।” " पन्द्रहवीं शताब्दी के संस्कृत-हिन्दी भाषा-साहित्य के प्रसिद्ध महाकवि ब्रह्म जिनदास द्वारा रचित 'गौतमस्वामी रास' अपभ्रंश भाषा की अन्तिम कड़ी गुजरातीराजस्थानी मिश्रित (मरु गुर्जर) का खण्ड-काव्य है जो तत्कालीन प्रचलित रास काव्यात्मक लोकशैली में निबद्ध है। इस रास - काव्य में भगवान महावीर के प्रमुख शिष्य इन्द्रभूति गौतम गणधर के पूर्वभव एवं वर्तमान जीवन का आख्यान चित्रित हुआ है । ” " गौतम भगवान महावीर की अनुपम दिव्यध्वनि को धारण करनेवाले प्रथम गणधर बन जाते हैं। उन्हें उसी समय मन:पर्यय ज्ञान की उपलब्धि हो जाती है और भगवान महावीर की देशना से जन-जन को आप्लावित कर केवलज्ञान प्राप्त कर स्वयं भी इस संसार से मुक्त हो सिद्ध पद को प्राप्त करते हैं। इस रास के कुल 132 पदों में दूहा, भास जसोधरनी, वीनतीनी, अम्बिकानी, आनन्दानी, माल्हतडानी आदि अपभ्रंश काव्य के छन्दों का प्रयोग हुआ है । " अपभ्रंश भाषा के अध्ययन-अध्यापन के साथ ही अपभ्रंश के अप्रकाशित ग्रन्थों की पाण्डुलिपियों का सम्पादनन-अर्थानुवाद एवं प्रकाशन करना भी अपभ्रंश साहित्य अकादमी की प्रमुख प्रवृत्ति रही है। इसी क्रम में कवि जीव द्वारा रचित काव्यरचना 'हरिसेणचरिउ' का श्रीमती स्नेहलता जैन द्वारा सम्पादित अंश एवं उसके अर्थ का तथा डॉ. प्रेमचन्द राँवका द्वारा सम्पादित महाकवि ब्रह्म जिनदास की रचना 'गौतमस्वामी रास' का इस अंक में प्रकाशन किया जा रहा है। हम इनके आभारी हैं। जिन विद्वान् लेखकों ने अपने लेख भेजकर इस अंक के प्रकाशन में सहयोग प्रदान किया उनके प्रति आभारी हैं। संस्थान समिति, सम्पादक मण्डल एवं सहयोगी कार्यकर्त्ताओं के भी आभारी हैं। पृष्ठ - संयोजन के लिए आयुष ग्राफिक्स, जयपुर तथा मुद्रण के लिए जयपुर प्रिण्टर्स प्राइवेट लिमिटेड, जयपुर भी धन्यवादार्ह हैं। डॉ. कमलचन्द सोगाणी (ix)
SR No.521860
Book TitleApbhramsa Bharti 2003 15 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages112
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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