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अपभ्रंश भारती 13-14
है। मंगलाचरण के प्रयोग और प्रयोजन की प्रासंगिकता को प्रमाणित करते हुए कवि ने मंगलाचरण की महिमा का मूल्याङ्कन किया है।
अपभ्रंश के परवर्ती काव्य विशेषकर हिन्दी वाङ्मय में कविरूढ़ियों की भाँति 'मंगलाचरण' का प्रयोग अनिवार्य हो गया है।
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हिन्दी साहित्य कोश, प्रथम भाग, पृष्ठ 36, सम्पादक - डॉ. धीरेन्द्र वर्मा तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, खण्ड-4, पृष्ठ 93-94, डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री, डी.लिट्. करकंडचरिउ, प्रस्तावना, पृष्ठ 11-12, डॉ. हीरालाल जैन, एम.ए., डी.लिंट्., भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन हिन्दी साहित्य का आदिकाल, द्वितीय संस्करण, पृष्ठ 80, डॉ. हज़ारीप्रसाद द्विवेदी तिलोयपण्णत्ति, अधिकार 1, गाथांक 8 जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग-3, पृष्ठ-259, क्षु. जिनेन्द्र वर्णी धवला, खण्ड 1, गाथांक 10 धवला, खण्ड 1, गाथांक 33 महापुराण, महाकवि पुष्पदन्त, अनुवादक डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन वही, वही, जसहरचरिउ, पुष्पदन्त, पृष्ठ 4, अनुवादक डॉ. हीरालाल जैन, एम.ए. डी.लिट्., भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन णायकुमारचरिउ, पृष्ठ 2, पुष्पदन्त, अनुवादक डॉ. हीरालाल जैन, एम.ए. डी.लिट्., भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
13.
मंगल कलश
394, सर्वोदय नगर आगरा रोड, अलीगढ़ - 202 001