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अपभ्रंश भारती 13-14 महादेवी का प्रसाधन स्वीकार करने के लिए कहा। तब सीता ने उन सभी ऋद्धियों का तिरस्कार कर कहा- 'तुम अपनी यह ऋद्धि मुझे क्यों दिखाते हो ? यह सब अपने लोगों के मध्य दिखाओ। उस स्वर्ग से भी क्या जहाँ चारित्र का खण्डन है। मेरे लिए तों शील का मण्डन ही पर्याप्त है।'
सीतादेवी की इस अलोभ प्रवृत्ति ने ही रावण को अपनी निन्दा करने को विवश कर दिया। वह कहता है- 'मैं किस कर्म के द्वारा क्षुब्ध हूँ जो सब जानता हुआ भी इतना मोहित हूँ। मुझे धिक्कार है कि मैंने इसकी अभिलाषा की!' और स्वयं को धिक्कारते हुए वह सीता को छोड़कर वहाँ से चला गया।
पति के प्रति एकनिष्ठता - एक दिन पुनः अपने आपको चन्दन से अलंकृत कर, अमूल्य वस्त्र धारणकर तथा त्रिजगभूषण हाथी पर बैठकर वह रावण सीता के पास पहुँचा। वहाँ अपने पराक्रम का बखान करता हुआ राम, लक्ष्मण, सुग्रीव, नल, नील व भामण्डल को भी मारने की धमकी देने लगा और कहा कि 'तुम जो अभी तक बची हुई हो वह मात्र मेरे संकल्प के कारण ही समझो।' तब रावण ने अपनी विद्या से राम आदि को मरते हुए दिखाकर तथा नाना रूपों का प्रदर्शन कर सीता को भयभीत करना प्रारम्भ किया।
तब पतिव्रत का पालन करनेवाली सीता ने कहा- 'हे दशमुख ! राम के मरने के बाद मैं एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकती। जहाँ दीपक होगा वहीं उसकी शिखा होगी, जहाँ चाँद होगा वहीं चाँदनी होगी और जहाँ राम होंगे सीता भी वहीं होगी।' यह कहते-कहते सीता मूछित हो गयी।
सीता के इस दृढ़ शीलव्रत ने ही रावण को दूर हटने व अपनी निन्दा करने को विवश किया। वह अपनी निन्दा करते हुए कहने लगा- ‘धिक्कार है मुझे, परस्त्री को सतानेवाले मुझसे अच्छे तो जलचर, थलचर और वन के पशु हैं। तिनका होना अच्छा, पत्थर-लोहपिण्ड व सूखा पेड़ होना अच्छा परन्तु निर्गुण, व्रतहीन, धरती का भारस्वरूप आदमी का उत्पन्न होना ठीक नहीं।' इस तरह बार-बार अपनी निन्दा कर उसने कहा- 'कल मैं इन्द्र की तरह युद्ध में राम व लक्ष्मण को बन्दी बनाऊँगा और उन्हें सीतादेवी को सौप दूंगा जिससे मैं दुनिया की निगाह में शुद्ध हो सकूँ।'13
इस तरह सीता ने रावण द्वारा किये गये सभी उपसर्गों को कठोरता से अपने विवेक के बल पर सहन कर अपने शीलरूप आत्म-सौन्दर्य की रक्षा की तथा रावण को भी धर्म के मार्ग पर स्थित किया। मन्दोदरी के सम्मुख सीता
निर्भयता से अनीति का विरोध - रावण ने अपनी पत्नी मन्दोदरी को सीता के लिए अपना दूत-कर्म करने के लिए बाध्य किया, तब मन्दोदरी सीता के पास गयी। वहाँ जाकर