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अपभ्रंश भारती 13-14
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ध्रुवतारा, पवित्रता से ढकी हुई शास्त्र की शोभा-सदृश दिखनेवाली सुन्दर सीता ने भक्ति योग से स्तुतिकर राम के सुघोष वीणा बजाने पर चौसठ भुजाओं का प्रदर्शन कर भक्ति भावपूर्वक नृत्य किया तथा पुलकित मन राम के साथ मुनिराज की आहार चर्या पूरी की । '
भय से त्रस्त वंशस्थल को आहत कर लौटे हुए लक्ष्मण को देखकर सीता भय से काँपती हुई कहती हैं- वन में प्रवेश करने के बाद भी, विशाल लतामण्डप में बैठे होने पर भी सुख नहीं है, लक्ष्मण जहाँ भी जाते हैं वहाँ कुछ न कुछ विनाश करते रहते हैं। 2
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करुणा से आप्लावित रावण की बहन चन्द्रनखा ने राम और लक्ष्मण पर आसक्त होकर उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने के लिए रोना शुरू किया तो सीता उनके माया भाव को नहीं समझती हुई करुणा से बोली- 'राम ! देखो यह कन्या क्यों रोती है? समय से छिपा हुआ दुःख ही मानो इसे उद्वेलित कर रहा है। ' ( आगे यही चन्द्रनखा सीताहरण का कारण बनी । )
असहाय भाव - लक्ष्मण के शक्ति से आहत होने पर तथा राम के दुःखी होने की दशा का समाचार सुनकर सीता दहाड़ मारकर रोती हुई अपने कठोर भाग्य को कोसने लगी'अपने भाई और स्वजनों से दूर, दुःखों की पात्र, सब प्रकार की शोभा से शून्य मुझ जैसी दुःखों की भाजन इस संसार में कोई भी स्त्री न
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लोकविश्वास में आस्था दायीं आँख फड़कने पर लोक विश्वास में आस्था रखनेवाली सीता सोचती है- 'नहीं मालूम क्या होगा ? एक बार जब दायी आँख फड़की थी तो अयोध्या से निर्वासन हुआ था तब देश-देश भटकते असह्य दुःख झेलते रहे। उसके बाद युद्ध से मुक्त होकर किसी तरह कुटुम्ब से मिल सके। इस समय फिर आँख फड़क रही है नहीं मालूम क्या होगा ?'s
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कर्म सिद्धान्त के प्रति निष्ठा राम ने जब लोगों के कहने पर सीता को वन में निर्वासित किया तब उस समय में भी सीता अपना ही दोष देखती है और कहती है - 'मुझ पापिन ने पिछले जन्म में कोई भयंकर पाप किया है, शायद मैंने किसी सारस की जोड़ी का बिछोह किया होगा! हे वरुण, हे पवन, . हे आग, हे सुमेरु पर्वत ! तुम भी तो वहीं थे, परन्तु तुम में से एक ने भी इसका विरोध नहीं किया !"
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सतर्कता लंका नगरी में हनुमान से राम की वार्ता जानकर सीता प्रारम्भ में तो प्रसन्न हुई किन्तु बाद में आशंकित होकर सोचने लगी- 'यह राम का ही दूत है या कोई दूसरा ही आया है ! यहाँ तो बहुत-से विद्याधर हैं, मैं तो सभी में सद्भाव देख लेती हूँ। पहले चन्द्रनखा विवाह का प्रस्ताव लेकर आयी और बाद में किलकारी मारकर हमारे ऊपर ही दौड़ी। तब विद्याधर ने सिंहनाद कर मेरा अपहरण कर मुझे राम से अलग कर दिया। लगता है यह भी किसी छल से मेरा मन का थाह लेना चाहता है ! "