SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपभ्रंश भारती 13-14 सु-पय सु-वयण सु-सद्द सु-वद्धिय । थिर-कलहंस-गमण गइ - मन्थर । किस मज्झार णियम्ब सु-वित्थर । रोमावलि मयरहरुत्तिण्णी। णं पिम्पिलि - रिञ्छोलि विलिण्णी । अहिणव - हुण्ड पिण्ड पीण-त्थण । णं मयगल उर-खम्भ-णिसुम्भण । रेहइ वयण - कमलु अकलंकउ । णं माणस-सरे वियसिउ पंकउ । सु-ललिय-लोयण ललिय-पसण्णहँ । णं वरइत्त मिलिय वर-कण्णहँ। घोलइ पुट्टिहिँ वेणि महाइणि । चन्दण-लयहिँ ललइ णं णाइणि ॥ 38.3.1-9 ।। - जब वह प्रहार करते हुए लक्ष्मण की प्रशंसा कर रहा था, तभी उसे सीता दिखाई दी, जो सुकवि की कथा की तरह सुन्दर सन्धियों से जुड़ी हुई थी, सुन्दर पद (चरण और पद); सुवचन (सुन्दर बोली और वचन), सुशब्द (सुन्दर शब्दोंवाली); और सुबद्ध (अच्छी तरह निबद्ध) थी। स्थिर कलहंस के समान चलनेवाली, गति में मन्थर, मध्य में कृश, नितम्ब में अत्यन्त विस्तारवाली, नाभिप्रदेश से निकली हुई रोमराजि इस प्रकार थी मानो चींटियों की कतार विलीन हो गयी हो। जो अभिनव (हुण्ड) शरीर, पीन स्तनोंवाली थी मानो उररूपी खम्भों को नाश करनेवाला मतवाला गज हो। उसका कलंकरहित मुख-कमल शोभित है, मानो मानसरोवर में कमल खिला हआ हो। सन्दर लोचन ऐसे हैं मानो ललित प्रसन्न श्रेष्ठ कन्याओं को वर मिल गये हों। उसके पुट्ठों पर वेणी इस प्रकार व्याप्त है मानो चन्दन-लताओं से नागिन लिपटी हुई हो। वाल्मीकि के समान ही स्वयंभूदेव ने पुरुष-सौन्दर्य का चित्रण किया है। लक्ष्मण-राम, रावण, हनुमान के दिव्य सौन्दर्य पर क्रमश: कल्याणमाला-वनमाला-जितपद्मा, सीता, मन्दोदरी, लंकासुन्दरी आदि आकृष्ट हो उनसे परिणय कर लेती हैं। ___सीता का पट-निर्मित चित्र का सौन्दर्य भामण्डल को काम की दस दशाओं तक पहुँचाता है,35 तो लक्ष्मण का अंग-सौष्ठव एवं सौन्दर्य कल्याणमाला को - पहिलऍ कहों वि समाणु ण वोल्लइ। वीयएँ गुरु णीसासु पेमल्लइ।
SR No.521859
Book TitleApbhramsa Bharti 2001 13 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2001
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy