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________________ अपभ्रंश भारती 13-14 चन्दप्पह पुण्ण-चन्द-वयण। जय जय पुप्फयन्त पुप्फच्चिय। जय सीयल सीयल-सुह-संचिय । जय सेयङ्कर सेयंस-जिण । जय वासुपुज्ज पुज्जिय-चलण । जय विमल-भडारा विमल मुह । जय सामि अणन्त अणन्त-सुह । जय धम्म-जिणेसर धम्म-धर । जय सन्ति - भडारा सन्ति-कर । जय कुन्थु महत्थुइ-थुअ-चलण । जय अर-अरहन्त महन्त गुण । जय मल्लि महल्ल-मल्ल-मलण । मुनि सुव्वय सु-व्वय सुद्ध मण ॥ 25.8.2-11 ।। - असह्य परीषह सहन करनेवाले ऋषभदेव, आपकी जय हो। अजेय काम का नाश करनेवाले अजितनाथ, आपकी जय हो। जन्म का नाश करनेवाले सम्भवनाथ, आपकी जय हो। नन्दित चरण अभिनन्दन, आपकी जय हो। सुमति करनेवाले आदरणीय सुमति, आपकी जय हो। पद्म (कमल) की तरह सौरभ (कीर्तिवाले) प्रवर पद्मनाथ, आपकी जय हो। पुष्पों से अर्चित पुष्पदन्त, आपकी जय हो। जिन्होंने शीतल सुख का संचय किया है ऐसे शीतलनाथ, आपकी जय हो। कल्याण करनेवाले श्रेयांसजिन, आपकी जय हो। पूज्य चरण वासुपूज्य, आपकी जय हो; पवित्रमुख आदरणीय विमलनाथ, आपकी जय हो। अनन्त सुखवाले हे अनन्त स्वामी, आपकी जय हो। हे धर्मधारण करनेवाले धर्म जिनेश्वर, आपकी जय हो। हे शान्तिविधायक आदरणीय शान्तिनाथ, आपकी जय हो। जिनके चरण महास्तुतियों से संस्तुत हैं ऐसे कुन्थुनाथ, आपकी जय हो। महान् गुणों से विशिष्ट अर अरहन्त, आपकी जय हो। बड़े-बड़े मल्लों (कामक्रोधादि) का नाश करनेवाले मल्लिनाथ, आपकी जय हो। सुव्रतोंवाले शुद्ध मन हे सुव्रत, आपकी जय हो। यही वन्दना-भक्ति उनका अभीष्ट है और भाव-पूजा का रूप भी। इसके तुरन्त अगले प्रसंग में महाकवि ने सुरति-आसक्ति का चित्रण किया है - रयणिहें मज्झें पयट्टइ राहवु । ताम णियच्छिउ परमु महाहवु॥ कुद्धइँ विद्धइँ पुलय-विसदृइँ। मिहुणइँ वलइँ जेम अभिट्टइँ॥ 23.11.1-2 ।।
SR No.521859
Book TitleApbhramsa Bharti 2001 13 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2001
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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