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________________ 16 अपभ्रंश भारती 13-14 हलाहल-विष पी लेना अच्छा, परन्तु ऐसे सेवाधर्म का पालन करना अच्छा नहीं जिसमें दूसरों की आज्ञाओं का दुखदायी पात्र बनना पड़ता है।'' यह कहकर सारथि अत्यन्त दुःखी मन से वापस चला जाता है। सीता इस निर्वासन के दुःख को सहन न कर सकी और करुण विलाप करने लगी, सीता आर्त स्वर में कहती हैं - 'संसार में कुछ भी बन जाना अच्छा है परन्तु कोई स्त्री मेरे समान अभाग्य, निराशा और दुःख की पात्र न बने। 18 स्वयंभू ने सीता निर्वासन का प्रसंग अत्यन्त करुण भाव से अभिव्यंजित किया है। तुलसीदास के 'मानस' में इस प्रसंग का अभाव परिलक्षित होता है। सीता की अग्नि-परीक्षा का प्रसंग ___ ‘पउमचरिउ' की तेरासीवीं सन्धि में सीता की अग्नि-परीक्षा का प्रसंग वर्णित किया गया है। जब विभीषण, अंगद, सुग्रीव तथा हनुमान् प्रभृति पुष्पक विमान से सीता को अयोध्या ले जाने हेतु आते हैं तो सीता कहती हैं कि जिस राम ने मुझे बियावान जंगल में निर्वासित किया, उसकी जलन सैकड़ों मेघों की वर्षा से भी शान्त नहीं हो सकती। फिर भी आप लोगों का यदि अनुरोध है तो मैं चलती हूँ।" सीता गोधूलि वेला में कौशलनगरी पहुँचती हैं तथा उसी उपवन में जाकर बैठ जाती हैं जहाँ उन्हें निर्वासन दिया गया था। प्रात:काल होने पर राम ने सीता के कान्तिमान मुखमण्डल को देखकर कहा कि स्त्री चाहे कितनी ही कुलीन और अनिन्द्य हो वह अत्यन्त निर्लज्ज होती है। भय से वे अपने कटाक्ष तिरछे दिखाती हैं परन्तु उनकी मति कुटिल होती है तथा उनका अहंकार बढ़ा होता है। बाहर से ढीठ होती हैं तथा गुणों से रहित। उनके सौ टुकड़े भी कर दिये जायें फिर भी हीन नहीं होतीं। अपने कुल में दाग़ लगाने से नहीं झिझकतीं और न इस बात से कि त्रिभुवन में उनके अयश का डंका बज सकता है। अंग समेटकर धिक्कारनेवाले पति को कैसे अपना मुख दिखाती हैं !" राम के सीता के प्रति उपर्युक्त वचन अत्यन्त निन्दनीय हैं, यहाँ पर राम के वचनों में मात्र पुरुषत्व का अहं अभिव्यक्त हो रहा है। राम के स्त्री के प्रति इन उपर्युक्त वचनों को सुनकर सीता नर-नारी में भेद स्पष्ट करते हुए कहती हैं कि - ‘आदमी चाहे कमज़ोर हो या गुणवान्, स्त्रियाँ मरते दम तक उसका परित्याग नहीं करतीं। पवित्र और कुलीन नर्मदा नदी, रेत, लकड़ी और पानी बहाती हुई समुद्र के पास जाती है फिर भी वह उसे खारा पानी देने से नहीं अघाता। नर और नारी में यही अन्तर है कि मरते-मरते भी लता पेड़ का सहारा नहीं छोड़ती।1 पउमचरिउ में राम सीता से सतीत्व प्रमाणित करने हेतु अग्नि-परीक्षा देने को नहीं कहते हैं वरन् सीता स्वयं अग्नि-परीक्षा का प्रस्ताव रखती हैं। जिस समय अग्नि प्रज्ज्वलित की जाती है उस समय बन्धु-बान्धव, प्रजाजन सभी रुदन करते हैं तथा राम को धिक्कारते हुए
SR No.521859
Book TitleApbhramsa Bharti 2001 13 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2001
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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