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________________ अपभ्रंश भारती 13-14 नवीन राजनीतिक विभागों का उदय हुआ। पूर्वी काठियावाड़ में वल्लभीराज का आविर्भाव हुआ। गुर्जर लोगों ने अपने लिए नवीन राज्य की स्थापना की। इस प्रकार गुजरात काठियावाड़, पंजाब, दक्षिण मारवाड़ तथा कन्नौज में मगध के शक्तिहीन साम्राज्य के साथ नवीन राज्यों का प्रादुर्भाव हुआ। सातवीं शती की शुरूआत में थानेसर अर्थात् कुरुक्षेत्र में प्रभाकरवर्धन ने उत्तरपथ की ओर अपनी शक्ति का वर्धन किया। हर्षवर्धन उत्तर भारत की बिखरी राजकीय सत्ता की बागडोर सम्भाले रहे। हर्षवर्धन ने चीन में भी अपने दूत भेजे और चीन के दूत भी कन्नौज आए। हर्षवर्धन की तरह पुलकेशी द्वितीय दक्षिण में शक्तिशाली राजा था। इनके राज्य में ईरान के राजा खुसरों ने अपने दूत भेजे। अरबों ने सात सौ दस ईसवी में सिन्ध पर विजय प्राप्त कर ली। भारत में पुनः जागृति की लहर दौड़ गई और अरबियों का प्रसार उस दिशा से रुक गया। परन्तु अरबियों के प्रवेश से हिन्दू तथा अरब संस्कृति का दान-प्रदान चल पडा। भारत के हिन्द मनीषी बगदाद गए और अरब के विद्यार्थी भारत में आये। दर्शन, वैद्यक, ज्योतिष, इतिहास एवं काव्य आदि ग्रन्थों का अनुवाद अरबी में हुआ। भारत से गणित का ज्ञान और पंचतंत्र की कहानियाँ आदि अरबियों द्वारा ही यूरोप को प्राप्त हुई। नवीं शती में कन्नौज पर पुनः प्रतिहारों का आधिपत्य हुआ क्योंकि हर्ष के साम्राज्य के छिन्न-भिन्न होने पर उत्तर भारत अनेक राज्य-खण्डों में विभक्त हो गया था। इनमें से पूर्व में बिहार-बंगाल के पाल, पश्चिम में गुजरात-मालवा के प्रतिहार और दक्षिण में मान्यखेट के राष्ट्रकूट मुख्य थे। ये तीनों कन्नौज को हस्तगत करना चाहते थे लेकिन नवीं शती में भोज और उसके वंशजों ने कन्नौज पर आधिपत्य प्राप्त किया। कन्नौज भारत के सबसे प्रतापी राजाओं की राजधानी बन गया। इन सब शक्तियों और राष्ट्रों में से प्रतिहार और राष्ट्रकूट ही भौगोलिक स्थिति के कारण भारत में बाह्य आक्रमण को रोकने में समर्थ थे और इनके अधीन छोटे-छोटे राजा प्रायः परस्पर में लड़ते रहते थे। दसवीं शती में छोटे-छोटे राज्यों में आपस में लड़ाई होती रही जिसमें उनमें क्षत्रियोचित वीरता और पराक्रम की भावना सदैव प्रदीप्त रही। राज्य को उन्नत रखने की प्रवृत्ति भी पनपी। कभी-कभी एक राज्य दूसरे राज्य के पराभव के लिए विदेशियों से सहयोग लेने में हिचकते नहीं थे। राजा के प्रति आदरभाव था लेकिन राष्ट्र की भावना उबुद्ध न हो पाई थी। ग्यारहवीं शती से अफगानिस्तान की ओर से इस्लाम के नए आक्रमण आरम्भ हो गए। ग्यारहवीं तथा बारहवीं शती में भारत की हिन्दू शक्ति अत्यन्त छिन्न-भिन्न हो गई। पाल, गहड़वार, चालुक्य, चन्देल और चौहानों के अतिरिक्त गुर्जर, सोलंकी तथा मालवा में परमार वंश के स्वतन्त्र राज्य स्थापित हुए। इन विभिन्न राज्यों की पारस्परिक प्रतिस्पर्धा एवं संघर्ष इतिहास में प्रसिद्ध है। इनमें संगठन का सर्वथा अभाव था। अत: आक्रमणकारी सत्ता को इन्हें पराजित करने में किसी विशेष परिश्रम की आवश्यकता न हुई। बारहवीं शती में अजमेर के चौहानों ने पुन: आती हुई इस्लाम की रोकने का प्रयत्न किया परन्त असफल रहे। फलस्वरूप तेरहवीं शती से हिन्दओं की
SR No.521859
Book TitleApbhramsa Bharti 2001 13 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2001
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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