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________________ अपभ्रंश भारती 13-14 अक्टूबर 2001-2002 अपभ्रंश साहित्य की तत्युगीन परिस्थितियाँ - डॉ. आदित्य प्रचण्डिया अपभ्रंश साहित्य के रचनाकारों का दृष्टिकोण धार्मिक होने के कारण अपभ्रंश साहित्य की भूमिका में धार्मिक विचारधारा की प्रधानता है। भारत में राजनीतिक सत्ता के साथ-साथ भाषा में भी परिवर्तन होता रहा है। आर्यों के आगमन पर यह केन्द्र पश्चिम रहा पुनः कौशल तथा मगध और अन्त में जब संस्कृत प्रधान भाषा हो गई तब पश्चिम में पुन: नवीन भाषाओं ने अपना विकास-क्रम अपनाया।' यह भाषा-वैज्ञानिक तथ्य है कि राजनीतिक, आर्थिक तथा धार्मिक केन्द्रोन्मुखता के कारण विविध स्थानीय बोलियाँ एक व्यापक राष्ट्रीय भाषा के रूप में ढल जाती हैं। अपभ्रंश का युग प्रायः छह सौ ईसवी से बारह सौ ईसवी तक माना जाता है।' राजनीतिक सत्ता मगध के केन्द्र से हटकर प्रायः प्राचीन मध्यदेश में रही। कन्नौज तथा मथुरा के आस-पास के नगर सांस्कृतिक केन्द्र रहे। कभी यह धारा पश्चिमोन्मुखी होकर गुजरात एवं मालवा तक पहुँची। यद्यपि अपभ्रंश साहित्य में राजनीतिक चेतना का अभाव है तथापि अपभ्रंशकालीन परिस्थितियों की जानकारी इस साहित्य के सम्यक् स्वाध्याय में सहायक होगी। यहाँ हमें राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और साहित्यिक परिस्थितियों के लेखा-जोखा की प्रस्तुति अपेक्षित है। राजनीतिक परिस्थितियाँ गुप्त साम्राज्य के छिन्न-भिन्न हो जाने पर ईसा की छठी शती में राजनीतिक सत्ता का केन्द्र मगध से हट गया। हूणों के सतत आक्रमण और अत्याचारों से अव्यवस्था फैली और
SR No.521859
Book TitleApbhramsa Bharti 2001 13 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2001
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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