________________
अपभ्रंश भारती - 11-12
71 (1) मूर्त के लिए मूर्त्त-विधान/वस्तु का वस्तु द्वारा
इसके अन्तर्गत कवि ने मुख्यतः अलंकारमूलक, उसमें भी साम्यमूलक अप्रस्तुतों की योजना की है। साम्यमूलक अप्रस्तुतयोजना के तीन रूप प्रचलित हैं; यथा - (क) सादृश्यमूलक, (ख) साधर्म्यमूलक, (ग) प्रभाव-साम्यमूलक।संदेश-रासककार अब्दुल रहमान ने उपरिलिखित तीनों साम्यमूलक अप्रस्तुतों का विधान किया हैं। इनका क्रमिक विवरण निम्ना (क) सादृश्यमूलक
अध्ययन की सुविधा के लिए इसके दो भेद किये जा सकते हैं - (अ) आकृतिसाम्याश्रित तथा (आ) वर्ण-साम्याश्रित । (अ) आकृति-साम्याश्रित
संदेश-रासककार ने रमणी के शरीर के विविध अंगों से आकृति-साम्य (रूपसाम्य) दिखाने के लिए बहुविध परंपरित और अपरंपरित अप्रस्तुतों की योजना की है। ये अप्रस्तुत मुख्यतः प्रकृति-जगत् से आगत हैं और सभी मूर्त हैं। उदाहरणार्थ - नायिका के अमृत-स्रावी मुख के लिए पूर्ण चन्द्र' -
सुपुण्ण सोमो य/अकलंक माइं, वयणं; लहरदार अलकों के लिए सलिल-कल्लोल' - विविहतरंगिणिसु सलिलकल्लोला ....अलया; रागयुक्त लोचन-द्वय के लिए अरविन्द-दल' - लोचनजुयं च णज्जइ रविंदल दीहरं च राइल्लं;
बाहु-युगल के लिए मानसरोवर में उत्पन्न मृणाल (नाल) तथा बाहुओं के अंतिम छोरों पर लगे हाथों के लिए द्विधाभूत कमल -
कोमल मुणालणलयं अमरसरूपन्न बाहुजुयलं से। ताणते करकमलंणज्जइं दोहाइयं पउमं; कटि के लिए भिड़ (ब) - विरूडलविक; नाभिमंडल के लिए पर्वतीय नदी का आवर्त - गिरिणई सम आवत्तं जोइज्जइं णाहिमंडलं गुहिरं; उरू-युगल के लिए कदलीस्तंभ' - जालंधरि थंभ जिया उरू रेहंति तासु अइरम्मा; पैरों की उँगलियों के लिए पद्मराजि तथा रोमावली के लिए कुसुम-नाल - रेहंति पउमराई व चलणंगुलि फलिहकुट्टि णहपंती। तुच्छं रोमतरंगं उबिन्नं कुसुमनलएसु; भू-युगल के लिए अनंग-धनु' - भमहजुयल सन्नद्धउ कस्सव भाइयइ णाई कोइ कोयंडू अणंगि चडाइयइ, इत्यादि।