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________________ 70 अपभ्रंश भारती - 11-12 2. अमूर्त विधान ___मूर्त अथवा अमूर्त प्रस्तुत के लिए अमूर्त अप्रस्तुत का प्रयोग होने पर अमूर्त विधान होता है उसे अमूर्तीकरण, सूक्ष्म-विधान और भाव-विधान भी कहते हैं। अप्रस्तुतविधान का यह रूप भाववादी दृष्टिकोण पर आधारित है। इस प्रकार की अप्रस्तुत योजना का प्रमुख प्रयोजन प्रतिपाद्य वस्तु को रूपायित करना अथवा इसके स्वरूप को संवेद्य करना इतना महत्वपूर्ण नहीं होता जितना कि उसके सामूहिक प्रभाव के आन्तरिक सूक्ष्म सौन्दर्यबोध का उन्नयन करके संवेद्य बनाना।' प्रवचन के आधार पर इसके भी दो भेद हैं - (क) मूर्त प्रस्तुत के लिए अमूर्त अप्रस्तुत तथा (ख) अमूर्त प्रस्तुत के लिए अमूर्त अप्रस्तुत। 3. मूर्तामूर्त विधान ___जहाँ मूर्त या अमूर्त प्रस्तुत के लिए मूर्त और अमूर्त - दोनों प्रकार के अप्रस्तुतों का प्रयोग हो, वहाँ मूर्त्तामूर्त विधान होता है। इसे मूर्तामूर्तीकरण, स्थूल-सूक्ष्म-विधान और वस्तु-भावविधान भी कहते हैं। अप्रस्तुतविधान का यह रूप अपेक्षाकृत विशिष्ट और जटिल होता है, क्योंकि यह वस्तु एवं भाव के मीलित दृष्टिकोण पर आधारित है। एतदर्थ, प्रयोक्ता (कवि) को ऐसे अप्रस्तुतविधान करते समय अपेक्षाकृत अधिक निपुणता दिखानी पड़ती है, अन्यथा दूरारुढ़ता का खतरा सदैव बना रहता है। __मूर्तामूर्त विधान के भी दो भेद किये जा सकते हैं - (क) मूर्त प्रस्तुत के लिए मूर्त और अमूर्त अप्रस्तुत तथा (ख) अमूर्त प्रस्तुत के लिए मूर्त और अमूर्त अप्रस्तुत। ___ एवंविध, अप्रस्तुतविधान के कुल छह रूप हिन्दी काव्य में प्रचलित हैं। मगर, कोई-कोई विद्वान इसके चार ही रूप मानते हैं । उन्हीं के शब्दों में - "अलंकार में वस्तु-विधान और भावविधान से अभिप्राय वस्तु के इतिवृत्तात्मक वर्णन और गुण या धर्म की भाव-योजना से है । जहाँ स्थूल का वर्णन किया जाता है, वहाँ भाव-विधान समझना चाहिए। इसी का नाम मूर्त विधान और सूक्ष्म विधान है । वस्तु-विधान में सादृश्य की प्रधानता रहती है। इसलिए, अप्रस्तुत योजना में बिम्ब-ग्रहण कराना होता है और भाव-विधान में साधर्म्य प्रधान होता है, इसलिए भाव की तीव्रता ही अभीष्ट होती है। मुख का कमल के साथ सादृश्य स्थिर करने में हम वस्तु-विधान द्वारा अप्रस्तुत की योजना करते हैं, किन्तु किसी बालिका के सरल शैशव की स्थिति के समान कहने में भाव-विधान द्वारा अप्रस्तुत की योजना की जाती है। इसतरह, वस्तु का वस्तु द्वारा, भाव का भाव द्वारा, भाव का वस्तु द्वारा और वस्तु का भाव द्वारा - इन चार प्रकारों से अप्रस्तुतयोजना की जाती है। संदेश-रासककार ने अप्रस्तुतविधान के कुल छह रूपों में से ये ही चार रूप प्रयुक्त किये हैं।
SR No.521858
Book TitleApbhramsa Bharti 1999 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1999
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size9 MB
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