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अपभ्रंश भारती - 11-12 कवि अद्दहमाण प्रतिभासम्पन्न, बहुज्ञ एवं सहृदय कवि था। वह संस्कृत, प्राकृत, पैशाची, अपभ्रंश आदि भाषाओं का ज्ञाता था। साथ ही वह विनयी एवं मानी कवि था। कवि ने स्वयं ग्रन्थ की विशेषताओं के माध्यम से रचना के मूल विषय एवं रस को बताते हुए स्पष्ट कर दिया है कि ग्रंथ शृंगारपरक काव्य है। अंत में कवि के शब्दों में ही संदेश-रासक - "अनुरागियों का रतिगृह, कामियों का मन हरनेवाला, काम में प्रवृत्तजनों के पथ का प्रकाशक, विरहिणियों के लिए मकरध्वज और रसिकों के लिए शुद्ध रस संजीवनकारी है" (1.22)। __ अतः यह नि:संदेह कहा जा सकता है कि संदेश-रासक लौकिक प्रेमभावना को व्यक्त करनेवाला शृंगार-प्रधान रासक-काव्यों का प्रतिनिधि ग्रन्थ है और अपभ्रंश के श्रेष्ठ काव्यग्रन्थ-रत्नों में उसका महत्त्वपूर्ण एवं विशिष्ट स्थान है।
1. अद्दहमाण (अब्दुर्रहमान) के संबंध में देखिए - 'अपभ्रंश भारती' अंक 9-10 में
प्रकाशित मेरा 'संदेश-रासक के रचयिता अब्दुर्रहमान' शीर्षक लेख, जिसमें कवि के जीवन-तथ्यों के संबंध में अनेक नवीन उद्भावनाएँ की गई हैं। कवि का समय विक्रम
की 11वीं शती का पूर्वार्द्ध होने से यही समय 'संदेशरासक' के रचे जाने का है। 2. दूत-काव्य या संदेश-काव्य की परम्परा भी अति प्राचीन है। इसमें मेघदूत अग्रगण्य है।
इस विद्या की नेमिदत्त, पवनदूत, शक-संदेश आदि कई जैन रचनाएँ भी प्राप्त होती हैं।
दूत काव्य वास्तव में 'विरहणा विप्रलंभ शृंगार' की पृष्ठभूमि लेकर लिखे गए हैं। 3. 'रासक' वस्तुतः एक विशेष प्रकार का मनोरंजन या खेल है। यह 21 मात्राओं का छंद
है। इसकी अन्तिम मात्रा लघु होती है। इसे आभाणक (आहाणउ) भी कहते हैं । वस्तुतः
ये दोनों एक ही हैं। 4. छंदों के विवेचन के लिए द्रष्टव्य है - 'संदेश-रासक' (त्रिपाठी संस्करण)
पृ. 102-113। 5. हिन्दी साहित्य का आदिकाल, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, पृ. 60, बिहार राष्ट्रभाषा
परिषद्, पटना, 1952। 6. कवि ने 'रासक' के विषय में मूलस्थान (मुलतान) का वर्णन करते हुए स्वयं संकेत किया __ है - 'कह बहु रुवि णिवद्धउ रासउ भासियइ' अर्थात् कहीं पर वहाँ विविध रूपों से निबद्ध
रासक पढ़े जाते हैं। (2.43)। 7. इस संदेश-कथन के बीच रचना में नायिका की एक उक्ति आती है, जो केशव जैसे
महाकवि की रचनाओं से मिलती है - 'संदेशडउ सवित्थरउ, पर मइ कहणु न जाइ। जो कालंगुलि मूंदडउ से बाँहडी समाइ ॥' (2.81) छंद सं. 80 भी द्रष्टव्य है।