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________________ 40 अपभ्रंश भारती जह लोहम्मिय णियउ बुह तह सुण्णम्मिय जाणि । 'सुहु असुह परिच्चयहि ते वि हवंति हु णाणि ॥ 72 ॥ जे - - हे पण्डित ! जैसे लोहे की साँकल को तू साँकल समझता है। उसी तरह तू सोने की साँकल को भी साँकल समझ । जो शुभ-अशुभ दोनों भावों का परित्याग कर देते हैं वे निश्चय से ज्ञानी होते हैं । 11-12 - शुभाशुभ दोनों ही भावों का परित्याग शाश्वत सुखोपलब्धि का कारण है। इसी भाव की अन्य गाथाएँ भी मिलती हैं। जैसे जो राग-द्वेष-मोह से रहित होकर सम्यग्दर्शन ज्ञान- चारित्रयुक्त होता हुआ निज आत्मा में निवास करता है वह शाश्वत सुख का पात्र होता है। 17 परभाव के त्याग की प्रेरणा भी कवि ने दी है तूपर का भाव त्यागकर और आत्मा का ध्यानकर जिससे तू शीघ्र ही ज्ञानमय मोक्ष - सुख को प्राप्त कर सके। 18 आत्मध्यान समभाव होने पर ही होता है। राग-द्वेष दोनों से परे होने पर ही समभाव / समता आती है। इसे ही सामायिक कहते हैं ।” सामायिक में स्थिरता पंचविध चारित्र - सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहार विशुद्धि, सूक्ष्म और यथाख्यात चारित्र से ही कर्मक्षय, विकल्पातीत शाश्वत सुख/मोक्ष सुख की उपलब्धि होती है। 4. वही, 6.21 5. आत्मसाक्षात्कार का पथ : जैन अयोग साधना, पृष्ठ 6। 6. वही, पृष्ठ 7। 7. योगसार, जोइन्दु, 26 । निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि जोइन्दुदेव आध्यात्मिक गंगा प्रवाहित करनेवाले आचार्यों की परम्परा के एक आचार्य हैं जिन्होंने अपभ्रंश भाषा में परमात्मप्रकाश और योगसार आदि ग्रन्थों का सृजन किया। इसमें प्राणी के भव-भ्रमण के कारण कर्मास्रव और योग का निरूपण कर उससे निवृत्ति के उपायों का निदर्शन किया है। कविवर जोइन्दु ने बाह्याडम्बरों को महत्त्व न देकर जीव की भाव-शुद्धि पर जोर दिया है। स्व और पर के स्वरूप को पहचानकर राग-द्वेष से परे निज स्वरूप में/ सामायिक में स्थिर होना कर्मयोग से परे होना है। यही योगों से निवृत्ति अयोग / सिद्धावस्था की प्राप्ति का मार्ग है और यही योगसार का सार है। | - 1. आत्मसाक्षात्कार का पथ : जैन अयोग साधना, बी. रमेश जैन, मारुथी सेवा नगर, बंगलौर, पृष्ठ 61 2. वही, पृष्ठ 61 3. तत्वार्थ सूत्र, उमास्वामी, 6.11
SR No.521858
Book TitleApbhramsa Bharti 1999 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1999
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size9 MB
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