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________________ N अपभ्रंश भारती - 11-12 अक्टूबर - 1999, अक्टूबर - 2000 'णायकुमारचरिउ' का साहित्यिक सौन्दर्य - डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव अपभ्रंश के श्रेष्ठ काव्यों में ‘णायकुमारचरिउ' का उल्लेखनीय वैशिष्ट्य है। इसके प्रणेता महाकवि पुष्पदन्त (ईसा की दसवीं शती : 972 ई.) अपभ्रंश के पारगामी विद्वान् थे। इनके द्वारा विरचित तीन अपभ्रंश-काव्य - 'महापुराण','जसहरचरिउ' और 'णायकुमारचरिउ', 'महत्त्रयी' के रूप में प्रतिष्ठित हैं। 'णायकुमारचरिउ' (< सं. 'नागकुमारचरितम्') का नायक नागकुमार है जो एक राजकुमार है। किन्तु, उसकी नियति है कि वह अपने सौतेले भाई श्रीधर (> अप. 'सिरिहर') की दुरभिसन्धिवश अपने ही पिता द्वारा प्राप्त निर्वासन-दण्ड की दारुण यन्त्रणा झेलता है जिससे कि उसे देश-देशान्तर में भटकने को विवश होना पड़ता है। नागकुमार कलावन्त और वीर युवा था। परिभ्रमणकाल में वह अपने अदम्य शौर्य और विस्मयकारी कला-चातुर्य से अनेक राजाओं और राजपुरुषों को प्रभावित करने में सफल होता है। बड़े-बड़े योद्धा उसकी सेवा में आ जुटते हैं । वह अनेक राजकुमारियों से विवाह करता है। अन्ततः वह पिता द्वारा आमन्त्रित होकर अपनी राजधानी लौट आता है और राज्याभिषिक्त होता है। जीवन के अन्तिम चरण में वह संसार से विरक्त होकर मोक्षमार्ग का अनुसरण करता है। . इस काव्य की कथावस्तु की संरचना वाल्मीकि रामायण के समानान्तर है । उस रामायण में भी चरितनायक राजकुमार राम अपने वैमात्रेय भाई भरत की माता कैकेयी की दुरभिसन्धिवश,
SR No.521858
Book TitleApbhramsa Bharti 1999 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1999
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size9 MB
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