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________________ 22 अपभ्रंश भारती - 11-12 'रामचरितमानस' की रामकथा सात काण्डों में विभक्त है, ये काण्ड इस प्रकार हैं - 1. बालकाण्ड 2. अयोध्याकाण्ड 3. अरण्यकाण्ड 4. किष्किंधाकाण्ड 5. सुंदरकाण्ड 6. लंकाकाण्ड 7. उत्तरकाण्ड कथावस्तु का तुलनात्मक अध्ययन - 'पउमचरिउ' तथा 'रामचरितमानस' में वर्णित रामकथा मूलतः तो समान है परन्तु कई घटनाओं तथा पात्रों के नामों प्रभृति में वैषम्य के कारण दोनों में भिन्नता भी दृष्टिगोचर होती है । 'पउमचरिउ' में जिस रामकथा को स्वयंभू ने पाँच काण्डों में वर्णित किया 'मानस' में उसी कथा को तुलसी ने 'सप्तसोपान' में निबद्ध किया है । इस सम्बन्ध में डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन का मत द्रष्टव्य है - 'पउमचरिउ' और 'रामचरितमानस' के कथानकों की तलना से यह बात सामने आती है कि एक में कुल पाँच काण्ड हैं तथा दूसरे में सात काण्ड। 'मानस' की मूलकथा का विभाजन 'आदि रामायण' के अनुसार सात सोपानों में है। चरिउ में सात काण्ड की कथा को पाँच भागों में विभक्त किया गया है। 'चरिउ' का विद्याधरकाण्ड 'मानस' के बालकाण्ड की कथा को समेट लेता है। दोनों में अपनी-अपनी पौराणिक रूढ़ियों और काव्य सम्बन्धी मान्यताओं के निर्वाह के साथ पृष्ठभूमि और परंपरा का उल्लेख है। थोड़े से परिवर्तन के साथ अयोध्याकाण्ड और सुन्दरकाण्ड भी दोनों में लगभग समान हैं लेकिन 'चरिउ' में अरण्य और किष्किंधा काण्ड अलग से नहीं हैं, इनकी घटनाएँ उसके अयोध्याकाण्ड और सुंदरकाण्ड में आ जाती हैं। मानस के अरण्यकाण्ड की घटनाएँ (चंद्रनखा के अपमान से लेकर जटाय-यद्ध तक) चरिउ के अयोध्याकाण्ड में हैं तथा किष्किंधाकाण्ड की घटनाएँ (राम-सुग्रीव मिलन, सीता की खोज इत्यादि) चरिउ के सुंदरकाण्ड में हैं । वस्तुतः देखा जाये तो किष्किंधाकाण्ड और अरण्यकाण्ड की घटनाएँ एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं और उन्हें एक काण्ड में रखा जा सकता है। स्वयंभू ने दोनों का एकीकरण न करते हुए एक को उसके पूर्व के काण्ड में जोड़ दिया है और दूसरे को उसके बाद के। इस प्रकार दो काण्डों की संख्या कम हो गई। लेकिन राम के प्रवृत्तिमूलक और उद्यमशील चरित्र को दोनों प्रधानता देते हैं।' 'पउमचरिउ' की कथा का प्रारम्भ ऋषभजिन की वंदना से होता है तथा इसके प्रथम काण्ड अर्थात् विद्याधरकाण्ड में क्रमश: ऋषभजिन की वंदना के उपरांत मुनिजनों की, आचार्यों की तथा चौबीस तीर्थंकरों की वंदना की गई है। इसके उपरांत कतिपय पारम्परिक निर्वहन के उपरांत रामकथा प्रथम संधि में ही तीर्थंकर महावीर के समवशरण से प्रारम्भ होती है। प्रथम काण्ड अर्थात् विद्याधरकाण्ड का प्रारम्भ तीर्थंकर महावीर के समवशरण से प्रारम्भ होता है। इस काण्ड में मुख्यतः ऋषभजिन का जन्म, रावण का जन्म, 'दशानन' नाम का आधार, रावण-विवाह, रावण की चारित्रिक विशेषताएँ, पवनंजय-अंजना प्रकरण, हनुमान का जन्म प्रभृति प्रसंग उल्लिखित हैं । 'रामचरितमानस' में प्रारम्भ में 'पउमचरिउ' की ही भाँति विभिन्न आराध्यों तथा लौकिक
SR No.521858
Book TitleApbhramsa Bharti 1999 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1999
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size9 MB
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